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________________ सरस्वती [भाग ३६ --+ + + कोई-न-कोई ईश्वरीय अभिप्राय रहता है । एक समय ऐसा साम्यवादियों के बीच में, पारस्परिक मतभेद बढ़ते ही आयेगा जब पूर्ण विज्ञान की बदौलत पहले से ही हमें जाते हैं । भूकम्प श्राने की बात उसी तरह मालूम हो जायगी जिस यह मेरा विश्वास है, जिसे समय समय पर मैं प्रायः तरह कि हमें ग्रहण पड़ने की खबर पहले से ही मालूम हो प्रकट करता रहता हूँ कि इस सारे झगड़े की जड़-हृदयजाती है। मनुष्य के दिमाग़ी ज्ञान की यह एक और विदारक, संहारकारी और शक्ति नष्ट करनेवाली कलह का विजय होगी। पर ऐसी एक नहीं असंख्य विजयों से भी असली कारण यह है कि कांग्रेस का पुराना दल हमेशा आत्मा की शुद्धि नहीं हो सकती, और बिना श्रात्मशुद्धि के ही इस बात की व्याख्या करने से दूर भागता है, बचता सब व्यर्थ है। फिरता है कि हिन्दुस्तान के लिए किस तरह की सामाजिक इसमें कोई मन्देह नहीं कि जिस प्रकार हम बिहार की व्यवस्था उपयुक्त होगी और समाज की शिक्षा-सम्बन्धी, विपदा को भूल गये हैं, उसी प्रकार कोयटा की इस महा- आर्थिक, राजनीतिक तथा धार्मिक नीतियाँ क्या होगी। विपदा को भी भूल जायँगे । जो लोग अात्मशुद्धि की किन्तु यह बात मैं निस्संकोच भाव से कहता हूँ कि श्रावश्यकता में विश्वास करते हैं, मैं उनसे कहूँगा कि वे वर्तमान शाब्दिक संग्राम के लिए मुख्यतया कांग्रेस कार्यमेरे साथ प्रार्थना में शरीक हों ताकि ऐसी दारुण विपत्तियों समिति अखिल भारतीय कांग्रेस कमिटी और उसके नेता में हम ईश्वर के अभिप्राय को समझ सकें और जब कभी ज़िम्मेदार हैं। आज कांग्रेस के भारत की अनिश्चित ऐसी विपदा आवे तब हम विनम्र भाव से अपने सिरजन- अवस्था के लिए उक्त संस्थायें ही दोषी हैं। यह उनका हार की शरण लेकर बिना किसी तरह के भेदभाव के कर्तव्य है कि वे अपने उद्देश की व्याख्या स्पष्ट और अपने विपद्ग्रस्त भाइयों की सेवा-सहायता कर सकें। सरल शब्दों में कर दें। जिस स्वराज्य के लिए हम इतने दिन से लड़ रहे हैं और आगे भी लड़ते रहेंगे वह क्या है, कांग्रेस में दलबन्दी . इसका खुलासा क्यों नहीं कर दिया जाता ? कांग्रेसमैन कांग्रेस की दलबन्दी के सम्बन्ध में डाक्टर भगवानदास ठीक ठीक अपने कर्तव्य का पालन नहीं कर रहे हैं, बिलने श्रीमती कमलादेवी चटोपाध्याय को एक विचार-पूर्ण कुल अपूर्ण करांची के प्रस्ताव को ही वे सब कुछ समझ पत्र लिखा है। उस पत्र का कुछ अंश यह है-- कर सन्तोष कर बैठ गये हैं, कांग्रेस-साम्यवादियों के साथ प्रिय श्री कमलादेवी, पत्रों में प्रकाशित जबलपुर दिल खोल कर हृदय से विचार-विनिमय नहीं करती। यही ' की कार्यवाहियों की रिपोर्ट पढ़ी है। यह देखकर मुझे कारण है कि कांग्रेस-साम्यवादी अाज विपथगामी हुए जा अतीव कष्ट होता है कि कांग्रेस के पुराने दल और कांग्रेस रहे हैं। A · Printed and published by K. Mittra, at The Indian Press, Lul., Allahabad, Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.035248
Book TitleSaraswati 1935 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevidutta Shukla, Shreenath Sinh
PublisherIndian Press Limited
Publication Year1935
Total Pages630
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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