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________________ ७६] संक्षिप्त जैन इतिहास । ANANKINANKIN N ARE.....NANXNNNNNNNY अपने विद्या प्रेमका परिचय दिया था । वह स्वभावतः विनम्र, दयालु, सत्यप्रेमी, श्रद्ध लु और धर्मात्मा थे। साधुओं और कवियोंके संसर्गमें रहना उन्हें प्रिय था । वह स्वयं व्याकरण, न्याय, सिद्धांत, साहित्य, राजनीति और हाथियोंकी रणविद्याके पारगामी विद्वान थे। सुप्रख्यात् विद्वानों और कवियों का आदर-सत्कार करना उनका साधारण कार्य था। दूर-दूर देशोंसे भाकर कविगण उनके दरबारमें उनका यशगान करते थे। मासिंह महर्निश रणाङ्गणमें व्यस्त रहने पर भी उन कवियों की मधुर और ललित काव्य-वाणीको सुनने के लिये समय निकाल लेते थे। वह सचमुच 'दानचूड़ामणि' थे। नागवर्म और केशिराज सदृश कवियों ने उनकी प्रतिभाको स्वीकार किया है। कुडलूर दानपत्रके लेखककी दृष्टिमें मासिंह मानवजातिके एक महान् नेता, एक न्यायवान् और निष्पक्ष शासक, एक वीर और जन्मजात योद्धा, एक न्याय विस्तारक, मौर साहित्य संरक्षक महापुरुष थे; जिसके कारण उनकी गणना गणवाडीके महान् शासकोंमें की जानी चाहिये । इस दानपत्रसे यह भी प्रगट है कि मारसिंह जिनेन्द्र भगवानके चरणकमलोंमें एक भौरेके समान लीन थे; जिनेन्द्र भगवान के नित्य होते हुये मभिषेक जलसे उन्होंने अपने पाप-मलको धो डाला था और गुरुओं की वह निरंतर विनय किया करते थे। संखवस्ती लक्ष्मेश्वर (घारवाड़) के लेखमें मारसिंहकी उपमा एक रत्न-कलशसे दी है, जिससे निरन्तर जिनेन्द्र भगवानका अभिषेक किया जाता हो। इन उल्लेखोंसे मारसिंहकी जैन धर्ममें गाढ़ श्रद्धा प्रतीत होती है। उन्होंने अपने ऐहिक कार्यों एवं धार्मिक कृत्योंसे जैन Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.035246
Book TitleSankshipta Jain Itihas Part 03 Khand 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamtaprasad Jain
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year1938
Total Pages192
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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