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________________ गङ्ग-राजवंश। [७१ करते थे। परवादी-हाथियों का खंडन करने में उन्हें मजा माता था। कुडलूर के दानपत्रसे प्रकट है कि एक बौद्धवादीसे वाद करके उन्होंने उसके एकांत मतकी धजियां उड़ा दी थीं। वह बड़े ही धर्मात्मा थे और जब उनकी विदुषी बहन पम्बब्बेका समाधिमरण सन् ९७१ ई० में तीस वर्षकी दीर्घ तपस्या करनेके बाद हुआ, तो उनके दिकको इस वियोगसे गहरी ठेस पहुंची; परन्तु वह विचक्षण नेत्र थे-वस्तुस्थितिको जानकर भपने कर्तव्यका पालन करने लगे। राष्ट्रकूट रानी रेखकसे बुटुगके एक पुत्री भी हुई थी; जिसका नाम संभवतः कुन्दन सोमिदेवी था । बुटुगने उसका विवाह कृष्णराजके पुत्र अमोघवर्ष चतुर्थके साथ कर दिया था। इस राजकुमारीसे ही राष्ट्रकूट वंशके मन्तिम राजा इन्द्रराजका जन्म हुआ था । बुटुगके पुत्र मरुरूदेव पनुसेय गङ्गको कृष्णराज तृतीयकी पुत्री ब्याही थीं। मरुलको · मदनावतार' नामक छत्र भी कृष्णराजसे प्राप्त हुआ था । मरुल अपने पिताकी भांति ही जिनेन्द्रभक्त था। लेखोंमें उन्हें । जिनपद-भ्रमर' लिखा है। मरुलके विरुद 'गङ्ग मार्तण्ड '-'गङ्ग क्रायुध'-'कमद' 'कलियुग भीम' और 'कीर्तिमनोभव' थे; जिनसे उनके शौर्य और विक्रमका वस्वान स्वयं होता है । उनकी माता रानी रेवक निम्मडिकी उपाधि 'चाग. वेदाङ्गी' थी। मालम होता है कि मरुलने अधिक समयतक राज्य नहीं किया था। उनके पश्चात् उनके सौतेले भाई मारसिंह राज्याधिकारी हुए थे।' १-1, पृ. ९४-९५; मै कु., पृ० ४५-४६;व बसाइं०, पृष्ठ ५५. Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.035246
Book TitleSankshipta Jain Itihas Part 03 Khand 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamtaprasad Jain
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year1938
Total Pages192
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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