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________________ ६८] संक्षिप्त जैन इतिहास। MONKANIKATANAMANNAINMENNNNNNNNNNNAIRAMINS: NARENSANNINANKATENNAININNAMANG पर आक्रमण किया था । कोट्टमंगल नामक स्थानपर भयंकर युद्ध हुआ था, जिसमें गङ्ग सेनाके भनियगौंड आदि वीर योद्धा काम माये थे । अन्तमें भन्नेपने इस शर्तपर भात्मसमर्पण किया था कि उसे और उसकी सेनाको अभय कर दिया जाय । राजमल जक नोलम्बोंसे उलझ रहा था तब उसका छोटा माई बुटुग, राष्ट्रकूट राजा कन्नरकी सहायतासे समग्र गणवाडीपर अधिकार जमा रहा था। इस मुद्रुवाले लेखसे स्पष्ट है कि कन्नरने राजमल्लकी जीवन लीला समाप्त करके बुटुगको गजा बनाया था। राजमल्लका व्याह राष्ट्रकूट राजा अमोघवर्ष द्वि० की कन्या रेवकसे हुआ था। इतिहासमें बुटुग 'गानारायण'-' गङ्ग गाङ्गेय' और 'ननिय गङ्ग' के नामोंसे प्रसिद्ध था। बुटुगके राज्य बुटुग। कालमें गङ्ग राज्यमें काफी उलटफेर हुआ था। युवराज अवस्थामें बुटुगने अपने भाई राजमल्लसे गङ्गराजाका अधिकार छीन लिया था, यह पहले लिखा जाचुका है । उसे राजा बनाने में राष्ट्रकूट राजा अमोघवर्ष तृतीयने पुरा भाग लिया था। इस समय राष्ट्रकूट और गङ्ग राजाओं का पारस्परिक सम्बन्ध मैत्रीपूर्ण था। बुटुग मौर अमोघवर्ष में परस्पर सन्धि होगई थी, जिससे वे एक दूसरेके सहायक हुए थे । बलिक समोघवर्षने अपनी कन्या रेवक बुटुगको व्याह कर इस संधिको और भी दृढ़ बना दिया था। दहेजमें बुटुगको गणराज्यके अतिरिक्त विलिगेरे ३००, बेल्बोल ३००, किसुवड ७० और वगेनडु ७०४ 1-गा०, पृष्ठ ९१-८२. २-मैकु०, पृ. ४५. Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.035246
Book TitleSankshipta Jain Itihas Part 03 Khand 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamtaprasad Jain
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year1938
Total Pages192
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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