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________________ गङ्ग-राजवंश। [५५ योद्धा था। भाखिर उसने भाईके विद्रोहको शमन किया और खम्बके पश्चाताप प्रकट करने पर उसे ही गंगवाडीका शासक नियत कर दिया । स्वम्बके उपरांत ठविराजने गंगवाड़ी पर कुछ समय तक शासन किया था। किंतु शिवमारके भाग्यने फिर पलटा खाया। गोविंदको पूर्वीय चालुक्योंसे मोर्चा लेना था; इसलिये उसने शिवमारको मुक्त करके उसे गंगवाड़ीका राज्याधिकार प्रदान कर दिया, इसतरह एक वार फिर गंगका राज्य जमा। गोविंदने अपना सौहार्द्र प्रकट करनेके लिये पल्लव घिराज नंदिवर्मन् द्वितीयके साथ स्वयं अपने हाथोंसे शिवमारको राजमुकुट पहनाया था । राजा होने पर शिवमार राठौर सेनाके साथ पूरे बारह वर्ष अर्थात् सन् ८०८ ई० तक पूर्वीय चालुक्य राज नरेन्द्र मंगराज विजयादित्य द्वितीयसे लड़ता रहा था। कहते हैं कि चालुक्योंसे उसने १०८ युद्ध किये थे। उपरांत दक्षिणके राजाओंमें स्वात्माभिमान जागृत हुआ और उन्होंने चालुक्यों और राठौरोंसे स्वाधीन होने के लिये परस्पर संगठन किया। गंग, केरल, चोल, पाण्ड्य और काञ्चीके राजाओंने मिलकर गोविन्दके विरुद्ध भत्र ग्रहण किये । गोविंद भी सजघन कर श्रीमवन नामक स्थान पर मा डटा और दक्षिणात्योंकी संयुक्त सेनासे इस वीरतासे बड़ा कि उसके छक्के छुड़ा दिये, दक्षिणियोंकी बुरी हार हुई । इस महायुद्ध में गंगवंश और सेनाके भनेक पुरुष काम मागए थे। शिवमारका अंतिम समय अंधकारमय होगया था। शिवमार एक महान योद्धा था-युद्धक्षेत्रमें वह विकराल रूप १-गंग०, पृ. ६१-६४ ब० मेकु पृ. ४१-४२ । Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.035246
Book TitleSankshipta Jain Itihas Part 03 Khand 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamtaprasad Jain
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year1938
Total Pages192
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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