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________________ ४४] संक्षिप्त जैन इतिहास । जाता है कि एक दिन अविनीत कावेरी तटपर आये तो वहां उन्होंने सुना कि कोई उन्हें 'सतजीवी' कहकर पुकार रहा है । नदी पूरे वेगसे बह रही थी। अविनीत उसमें कूद पड़े और पार तैर गये । उनका ब्याह पुन्नाटके राजा स्कन्दवर्मनकी कन्यासे हुआ था। शासन लेखोंसे प्रगट है कि अविनीत की शिक्षा दीक्षा एक जैनकी भांति हुई थी। जैन विद्वान विजयकीर्ति उनके गुरु थे। अपने राज्यशासनके पहले वर्षमें उन्होंने उरनू। और पेरूरके जिन मन्दिरोंको दान दिया था। वैसे ब्राह्मणों को भी उन्होंने दान दिये थे। शासन लेखोंमें भविनीत शौर्य के अवतार-हाथियोंको वश करनेमें मद्वितीय और एक अनूठे घुड़सवार एवं धनुर्धर कहे गए हैं। वह देशकी रक्षा करन्में संलग्न और वर्णाश्रम धर्मको सूरक्षित बनाए रखने में दत्तचित्त थे । यद्यपि उन्हें हरका उपासक कहा गया है, परन्तु उनका झुकाव जैन धर्मकी ओर अधिक था । अपने राज्यके प्रारम्भ और अंतमें उन्होंने जैनोंको खूब दान दिये थे-पुन्नडकी जैन वस्तियोंपर वह विशेष रूपेण सदय हुए थे। भविनीतका पुत्र दुविनीत उनके बाद गना हुमा। प्रारंभिक गङ्ग राजाओंमें वह एक मुख्य राजा था। दुनिीत। उसके राज्यकालमें गङ्गराष्ट्रमें उल्लेखनीय __ परिवर्तन हुये थे। पुराने रिति रिवाज और राजनीतिमें उल्लेखनीय सुधार हुये थे-लोग समुदार होगए थे । मृत्यु समय भविनीतने अपने गुरु विजयकीर्तिकी सम्मतिपूर्वक अपने लघु १-गग०, पृ. ३३.२-मैकु., पृ० १५. ३-गह पृष्ठ ३४. Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.035246
Book TitleSankshipta Jain Itihas Part 03 Khand 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamtaprasad Jain
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year1938
Total Pages192
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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