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________________ पल्लव और कादम्ब राजवंश [२५ समूह ' विषय ' कहलाता था और कई विषयोंका समुदाय एक • मण्डल ' होता था । एक प्रांतके अन्तर्गत ऐसे कितने ही मण्डल होते थे, जिनपर एक वायसराय शामन करता था। दस मांडलिकोंके ऊपर एक राजकुमार शासन और कर वसुल करने के लिये नियुक्त किया जाता था । प्रजापर ३२ प्रकारका कर लगाया जाता था; परन्तु ग्रामवासी इन सब ही प्रकारके करोंसे मुक्त थे। उनसे फसलकी उपजसे दस प्रतिशत राज्यकर वसूल किया जाता था। भूमिका नाप-तोल लिखा जाता था और नापका परिमाण · निवर्तन' कहलाता था. जो राजाके पैके बराबर होता था । अनाजको तोलनका परिमाण 'स्वण्दुक' कहा जाता था । यदि कोई ग्राम अथवा भूमि किसी धर्म-संस्थाको भेट कर दी जाती थी, तो उसकी घोषणा भासपासके ग्रामोंमें करा दी जाती थी और सरकारी कर्मचारीगण उस ग्राममें जाते भी नहीं थे । कदम्बोंके सिक्के 'पद्मटंक' कहलाते थे, जिनपर पद्म आदि पुष्प तथा सिंह आदि पशुओंके चित्र बने होते थे। कदम्बोंने अपने ही ढंगके सुन्दर मन्दिर और मनहर मूर्तियां बनवाई थीं; जिनके नमूने हल्मीमें ' सप्रमातृक' मूर्ति एवं बादामी आदिके मन्दिर हैं।' कदम्बवशी गजाओंके अभ्युदयकालमें दक्षिण भारतमें प्राचीन नागपूजाके अतिरिक्त ब्राह्मण, जैन और कदम्ब राजा और बौद्ध. यह तीनो ही भार्यधर्म प्रचलित थे। जैन धर्म। जनतामें नागभक्तोंके उपरांत सबसे अधिक १-जमीसो॰, भा॰ २२ पृ. ५६-५९. Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.035246
Book TitleSankshipta Jain Itihas Part 03 Khand 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamtaprasad Jain
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year1938
Total Pages192
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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