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________________ पल्लव और कदम्ब राजवंश । [२१ हुई थी। काकुस्थकी महानता उसके विवाह सम्बन्धोंसे भी सष्ट है जो गुप्त सम्राट् एवं अन्य बड़े बड़े गजाओंसे हुए थे। उसने कई इमारतें और एक सुन्दर स्थम्म भी बनवाया था; जिसपर काव्यमई संस्कृत-भाषामें एक लेख अङ्कित है। महाराज काकुस्थवर्माके दो पुत्र ( १ ) शांतिवर्मा और ( २ ) कृष्णवर्मा थे। शांतिवर्मा बड़े थे; इसलिये वह पहले युवराजपदपर आसीन रहे और बादमें राजा हुये। उन्होंने सन् ३९० से सन् ४२० ई० तक गज्य किया था। वह समग्र कर्णाटक देशके राजा और तीन मुकुटोंके धारक कहे गये हैं, जिससे प्रस्ट है कि कदम्ब-साम्राज्य तीन भागोंमें विमक्त था एवं उसकी प्रथक-प्रथक तीन राजघानियां (१) बनवासी (२) उच्छशनी (३) और पलासिका थीं। पलासिकामें उसका भतीजा इनकी छत्रछायामें राज्य करता था। शांतिवर्मा के पश्चात् उसका पुत्र मृगेशवर्मा (सन् ४२०-११५) सिंहासनारूढ़ हुमा था। वह एक महा मृगेशवर्मा । पराक्रमी शासक था और उसे संग्राम एवं सन्धि परिचालनमें ही मानन्द माता था। कहते हैं कि वह पल्लवों के लिये बड़वानल मौर गङ्गोंका ध्वंशक था। मृगेशने के कय राजकुमारी प्रभावतीसे विवाह करके अपनी शक्तिको बड़ाया था भौर नवनी कन्या बाकाटक नरेश नरेन्द्रसेनको व्याही थी। Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.035246
Book TitleSankshipta Jain Itihas Part 03 Khand 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamtaprasad Jain
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year1938
Total Pages192
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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