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________________ पल्लव और कादम्ब राजवंश | [ १७ कुरुम्बगण बड़े ही वीर और धर्मश्रद्धालु थे । उनके मुख्य राजा कमन्दप्रभु कुरुम्ब थे और उनकी राजधानी पुलक थी; जहां उन्होंने कई भव्य जिनालय बनाये थे । जैन धर्मकी रक्षा के लिये कुरुम्बोंने चोलोंसे कई लडाइयां लड़ी थीं । भाखिर अडोन्ड चोलने उन्हें परास्त कर दिया और जैन धर्म राज्याश्रयविहीन हो हतप्रभ होगया । h यद्यपि पल्लव और पाण्ड्य देशोंमें जैन धर्मकी महिमा क्षीण होगई थी, परन्तु पूर्वीय और पश्चिमीय कदम्ब राजवंश | मैसूर एवं उसके आसपास के देशोंमें वह समृद्धिको प्राप्त था । इस समृद्धिका कारण वहां के तत्कालीन राजवंशद्वारा जैन धर्मको आश्रय मिलना था । मैसूरमे कादम्ब और गङ्ग वंशके राजाओंका शासनाधिकार चलता था। इनमें से कदम्ब वंशके राजाओंका अधिकार वर्तमान मैसूर राज्य के शिमोग और चितल्दुर्ग जिलों एवं उत्तर कनारा, धारवार और बेळगांव जिलोंपर था । इन कदम्बोंकी राजधानी बनवासी अथवा वैजयन्ती थी, जिसका उल्लेख यूनानी लेखक टोल्मीने किया है एवं श्री जिनसेनाचार्यने जिसे हरिवंशी राजा ऐलेयके वंशन नृप चरम द्वारा अस्तित्वमें माया बताया है । सारांशतः बनवासी एक प्राचीन नगर था | बनवासी के कदम्बोंके सगोत्री कदम्ब गोमा और हाङ्गलमें भी शासन करते थे; परन्तु वे विशेष बलवान और समृद्धिशाली नहीं थे । बनवासीके कदम्बोंका राज्यकाल सन् २५० 3 " १-आइई०, पृ० २३६. २ - जमीस्रो० भा० २१ पृष्ठ ३१३-३१५. 3- हरि० सर्ग १७ व संजइ०, मा० ३ खण्ड १ पृष्ठ ४७. ૨ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.035246
Book TitleSankshipta Jain Itihas Part 03 Khand 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamtaprasad Jain
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year1938
Total Pages192
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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