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पल्लव और कदम्ब राजवंश ।
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पल्लव और कदम्ब राजवंश ।
चेर, चोल और पांड्य मंडलोंका संयुक्त प्रदेश तामिक अथवा द्राविड़ राज्य कहलाता था । प्रारम्मिक-कालमें चेर, चोल और पाण्ड्य राजवंश ही अपने-अपने मण्डल में राज्याधिकारी थे; किन्तु उपरान्त उनमें परस्पर मविश्वास और भमैत्री उत्पन्न होगये, जिसका कटु परिणाम यह हुमा कि वे परस्पर एक दुसरेके शत्रु बनगये और मापसमें राज्यके लिये छीना-झपटी करके लड़ने-झगड़ने लगे। इस भवसरसे पल्लवादि वंशोंके राजाओंने लाभ उठाया, उनका उत्कर्ष हुआ। किन्हीं विद्वानोंका भनुमान है कि पल्लव-वंशके राजा मूल
भारतीय न होकर उस विदेशी समुदायमेंसे पल्लवोंकी उत्पत्ति । एक थे, जो मध्य ऐशियासे भाकर भारतमें
राज्याधिकारी हुआ था। राइस सा० ने मनुमान किया था कि पल्लव-गण पल्हव अर्थात् 'पर्धियन , ( Arsaoidan Parthians ) लोग थे; किन्तु भारतीय विद्वान उनके इस मतसे सहमत नहीं हैं। श्री रामास्वामी ऐय्यंगर महोदय बताते हैं कि ईस्वी सातवी शताब्दिके मध्य दक्षिण भारतमें पल्लव वंश प्रधान था। ईस्वी चौथी और पांचवी शताब्दिके प्रारम्भ तक उनका उत्कर्ष कालके गर्ममें था। प्रारंभमें इस वंशके राजा काञ्चीके
१-मैकु; पृष्ट ५२-५३ ।
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