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________________ तत्कालीन छोटे राजवंश । [१६१ उसका व्यवहार जैनियों के प्रति समुदार नहीं रहा-यही कारण है कि जैनी उसके समयमें धरणीकोटा छोड़कर चले गये थे। कहते हैं उस राजाके नाना गनपतिदेवने तो जैनियोंको कोल्हू ओंमें पिलवानेकी नृशंसता का परिचय दिया था। वरंगलमें आज भी जैन ध्वंसावशेष इस अत्याचारकी साक्षी देरहे हैं।' (९) महाबलि-रानवंश-के राजाओंका राज्य गंगोंसे पहले ___ मांध्र देशसे पश्चिमकी ओर था। उनका दंडाधिप श्री विजय । प्रदेश 'भर्द्ध-सप्त-लक्ष' कहलाता था तथा आंध्र मंडल में उनके बारह सहस ग्राम थे। उनके मादिपुरुष महाबली और उनके पुत्र बाण नामक राजा थे। उनका राजचिह्न वृषम था और उनकी राजधानी महाबलिपुर थी। प्रारम्ममें वे शिव उपासक थे। उनके एक राना नरेन्द्र मह गज थे, जो बलिवंश' के आभूषण कहे गये हैं। उनके दण्डाधिपति श्री विजय एक पराक्रमी योद्धा और महान वीर थे। एक शिलालेखमें उनके विषय में लिखा है कि " महायोद्धा दण्डाधिरति श्री विजय अपने स्वामीकी माज्ञासे चार समुद्रोंसे वेष्टित पृथ्वीर राज्य करने थे जिन्होंने अपने प्रवल तेजसे शत्रुओंको दबाया और उन्हें विजय कर लिया था । अनुपम कवि श्री विनयके हाथमें तलवार बड़े बलसे युद्ध शत्रुओं को काटती है और घुड़सवारों की सेनाके १-ममप्रबिस्मा०, पृ. २१-२३. Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.035246
Book TitleSankshipta Jain Itihas Part 03 Khand 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamtaprasad Jain
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year1938
Total Pages192
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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