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________________ बत्कालीन छोटे राजवंश | २. सांतार - राजवंश | इस राजवंश के मूल संस्थापक जिनदत्तराय नामक महानुभाव थे, जो एक समय जिनदत्तराय । उत्तर - मथुरा के उम्रवंशी राजा थे। जिनदत्तरायके पिता सहकार नामक राजपुरुष थे । सहकारने एक किरात कन्यासे विवाह किया और उसके किगत पुत्रको राज्याधिकार दिलानेके लिये वह जिनदत्तरायके प्राणों का ग्राहक होगया । जिनदत्तगय इस संकट के अवसरपर अपने प्राण लेकर भागा | साथमें उनकी माता भी होली, जिन्होंने शासनदेवी पद्मावती की मूर्ति भी लेली । वे माता-पुत्र भागते हुये दक्षिण भारतके होम्बुच नामक स्थानपर पहुंचे। वहांपर उन्होंने एक सुंदर मंदिर बनवाकर उसमें पद्मावतीदेवीकी प्रतिमा बिराजमान की । पद्मावतीदेवीके अनुग्रह से जिनदत्तरायको सोना बनानेकी विद्या सिद्ध हुई। उन्होंने बहुतसा सोना बनाया। अब उन्होंने आसपास के सरदारोंको अपने वश कर लिया । सांतक - प्रदेशको जीतने के कारण उनका राजवंश " सांतार " कहलाया । पहले यह राजा चांत " कहलाते थे । जिनदत्तरायमे पोम्बुर्च (होम्बुच ) में अपनी राजधानी स्थापित की; जहांसे वह और उनके उत्तराधिकारी सांत लिंगे सहस प्रांतपर शासन करते रहे थे । वह प्रांत वर्तमान तीर्थहल्ली तालुक से किंचित् अधिक था । जिनदत्तरायने दक्षिणमें कलस देश ( मुडगेरे तालुक़ ) तक अपना राज्य बढ़ाया था और उत्तर में गोवर्द्धन गिरि ( सागर तालुक़ ) पर किला बनाया था । उपरान्त सान्तारोने अपनी राजधानी कलसमें और फिर कारकळ ( दक्षिण कनारा) में " Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat [ १४७ " www.umaragyanbhandar.com
SR No.035246
Book TitleSankshipta Jain Itihas Part 03 Khand 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamtaprasad Jain
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year1938
Total Pages192
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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