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________________ तत्कालीन छोटे राजवंश । [ १४५ उपरांत जिस समय राष्ट्रकूट राजाओंने गंगराजा शिवमारको अपना बन्दी बना लिया था और गंगवाड़ी पोक चोर उनके अधिकार में पहुंच गई थी तो उससमय र ठौर राजाने सिंदपोतक पुत्र चारुपोन्नेर और उनक पौत्र पोलल चोरको नोलम्ब लिगे सहस्र एवं अन्य प्रांतोंपर शासन करनेका अवसर दिया था । किन्तु जब गंग राजा फिर स्वाधीन होगये और राजमल्ल सत्य वाक्य प्रथम शासनाधिकारी हुये, तो उन्होंने नालम्ब राजाओंसे मित्रता करली - सिंहपोत की पौत्री, पल्लवधि गजकी पुत्री और नोलम्ब घिराजकी लघु मगनीके साथ उन्होंने अपना विवाह किया तथा अग्नी पुत्री जायव्वे नोलम्बा घिसन पोळल. चोरको व्याह दी । एक शिलालेखसे प्रगट है कि पोलल चोर गंग राजा नीतिमार्गके आधीन 'गंग छै सहस्र' नामक प्रान्त पर शासन करने थे । 5 पालल चोरकी रानी गंग राजकुमारी जायव्वेकी कोख मे उनके उत्तराधिकारी महेन्द्र मथवा वीर महेन्द्रका महेन्द्र जन्म हुआ था । महेन्द्र भी 'गंग छे महत्र ' प्रांतपर गंग राजाओं आन शामनाधि I कारी थे । किन्तु सन् ८७८ के लगभग वह स्वतंत्र होगये थे और उन्होंने गंग राजाओंसे मोरचा लिया था। गंग युवराज बुटुगके. पुत्र एरेय हाथसे इस वीरकी जीवनलीला समाप्त हुई थी । महेन्द्रकी गनी दीवंबिके एक कदम्ब राजकुमारी थी, और इनके पुत्र अध्मप थे । १० Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.035246
Book TitleSankshipta Jain Itihas Part 03 Khand 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamtaprasad Jain
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year1938
Total Pages192
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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