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________________ गङ्ग-राजवंश। C साथ २ उपासना-तत्वके प्रतिमूर्ति होते थे-मावुकहृदय जैनी अपनी प्रार्थनाको उस पाषाणमें मूर्तिमान बना देते थे। सातवीं से दशवी शताब्दियोंके मध्यवर्ती कार में जैनाचार्योने अपने धर्मका प्रशंसनीय प्रचार किया था और उससमय प्राय: सब ही प्रमुख जैन स्थानों जैसेजवगल, कुत्तूर, मल्गोदु. ङ्कनाथपुर, चिक्कानसोगे, हेगडदेवनकोटे वित्ता, हुम्च, और श्रवणबेलगोलमें स्थापत्यकलाके शादर्श नमूने जैनियोंने बनवाये थे। हनगलकी 'चन्द्रनाथवस्ती' कुत्ताकी 'शांतिनाथवस्ती'; हनसोगेकी 'मादिनायबस्ती'; कित्ताकी पार्श्वनाथ वस्ती'; विक्रमादित्य सांतार द्वारा सन् ८९.८ में निर्मित बाहुबलिकी 'गुद्ददवस्ती'; iक्कसगङ्गकी धर्मपुत्री पल्लवरानी चत्तलदेवी द्वारा निर्मापित ६ञ्चलबस्ती' और भङ्गाडिका 'मकर मिनालय' सब ही इस बात के प्रमाण हैं कि वे द्राविड़ प्रणालीके माघारपर बनाये गये थे। मंदिरोंके अतिरिक्त गंग राजाओंने मण्डप, स्तंभ, विशालकाय मूर्तियां मादि निर्मापित कराकर अपने समय के जैन-स्तम्भ। शिल्लको मूल्यमई बनाया था। हिंदुओंके मण्डपमें चार स्तम्भ हुआ करते थे. परन्तु गंगोंके बनवाये हुये जैन मण्डपोमें पांच स्तम्भ होते थे। चारों कोनों पर एक एक स्तम्भ होने के अतिरिक्त मण्डपके बीचमें भी जैनियोंने एक स्तम्भ रक्खा था और इस बीचवा ले स्तम्मकी यह विशेषता थी कि वह ऊपर छतमें इस होशियारीसे पच्ची किया जाता था कि उसकी तलीसे एक रूमाल भारपार निकल सकता था। फर्ग्युसन १-पूर्व पृ. २३५-२३६ । Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.035246
Book TitleSankshipta Jain Itihas Part 03 Khand 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamtaprasad Jain
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year1938
Total Pages192
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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