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________________ ११६] संक्षिस जैन इतिहास । बतलाया है। इससे प्रगट है कि 'श्री मजितसेनाचार्य नंदिसंघके मन्तर्गत देशीगणके भाचार्य थे और उनके गुरु सिंहनंदी तथा मार्यसेन नामके मुनिराज थे। उन्होंने 'अलङ्कार चूड़ामणि' और 'मणिप्रकाश' नामक ग्रन्थको रचा था।' गङ्ग राजा मारसिंहने सन् ९७३ ई० में बकापुरमें इन्हीं भाचार्य महाराज के चरणकमलोंमें सल्लेख. नाव्रत धारण करके देवगति प्राप्त की थी। सेनापति चामुंडराय और उनके पुत्र जिनदेवन उनके श्रावक-शिष्य थे। श्रवणबेलगोलमें एक जिनमन्दिर निर्माण कराकर उन्होंने भजितसेनाचार्य के प्रति उत्सर्ग किया था। भजितसेनस्वामी स्वयं राजमान्य महापुरुष थे और उनके उपरांत हये जैनाचार्य भी राज्याश्रमको पाने में सफल हये थे। परिणामतः राजा और प्रजाके सहयोग द्वारा श्री मजितसे न जीने जैनधर्म का प्रकाश खुब ही किया था। इन मुनिगजके प्रधान शिष्य 'कनकसेन' नामक मुनि थे, जो 'विगतमानमद'-'दुरितांत'-'बरचरित्र'-महा. व्रत पालक' मुनिपुंगव लिखे गये हैं। कनकसेनके भनेक शिष्य थे, जिनमें 'भवमहोदधितारतरंडक' जितमद श्री जिनसेनजी मुख्य थे। इन जिनसेनजीके छोटे भाई का नाम नरेन्द्रसेन था, जो चारुचरित्र. वृत्ति, पुण्यमूर्ति और वादियों के समूहके जीतनेवाले कहे गये हैं। श्री जिनसेनके शिष्य मलिषेण थे, जो ' उभय भाषा कवि १-जैहि०, मा• १५ पृष्ठ २१-२४ । ष्णराव महाशयने न मालूम किस भाधारसे भजितसेनजीको श्री गुणभद्राचार्यका शिष्य लिखा है ! (ग. पृ. २०)। 2-Sartstrit MH. My gotto Odong, p. 304. Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.035246
Book TitleSankshipta Jain Itihas Part 03 Khand 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamtaprasad Jain
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year1938
Total Pages192
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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