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________________ १.०२] संक्षिप्त जैन इतिहास । ननधर्म प्रचारके लिए पांड्य, चोल और चेर देशमें कई वार भ्रमण 'करके भव्योंका उद्धार किया था। यह भाचार्य महाराज इतने मान्य और प्रसिद्ध हुए कि इनके नामकी अपेक्षा जैन साधुओं का 'कुन्दकुन्दान्वय' अस्तित्व में भाया । कुन्दकुन्दस्वामीके बाद दूसरे प्रख्यात भाचार्य स्वामी समन्तभद्र थे। इनकी प्रतिभा और पवित्रताने जन धको खूब ही प्रकाशित किया था। इनका भी वर्णन पहले लिखा जाचुका है। गङ्ग राजवंशके वर्णनमें विशेष उल्लेखनीय श्री सिंहनन्दाचार्य हैं । उनका महान व्यक्तित्व, प्रतिभा और प्रभाव इसीसे प्रष्ट है कि उन्होंकी सहायतासे माघव और दिदिग गङ्गराज्यकी स्थापना करने में सफल-मनोरथ हुए थे। सिंहनन्दि भाचार्यने उन राजकुमारोंको केवल धर्मो देश ही नहीं दिया था; बल्कि उनको सेना मौर अन्य राजकीय शक्तियां भी प्रप्त कराई थीं। खेद है कि इन महान् भाचार्य के विषयमें अधिक कुछ भी ज्ञात नहीं हुआ है । हाँ, यह अनुमान किया जाता है कि सिंह. नंदिके निकटतम उत्तराधिकारी वक्रग्रीव, 'नवस्तोत्र' के रचयिता बज्रनन्दिन् और 'विलक्षण सिद्धान्त' के खंडनकर्ता पात्रकेसरी थे। वक्रग्रीव भाचार्यकी विद्वत्ताका अनुमान इसीसे लगाया जा सकता है कि उन्होंने 'अथ' शब्दका अर्थ लगातार छै महीने तक प्ररूपा थी। दज्रनन्दिन् संभवतः माचार्य पूज्यपादके शिष्य थे, जिन्होंने मदुरामें 'द्राविड़ संघ' की स्थापना केवल जैन धर्मके प्रचारके लिये की थी। १-ग०, पृष्ठ १९३-१९६. २-शिसं०, ममिका- पृष्ठ १२८. Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.035246
Book TitleSankshipta Jain Itihas Part 03 Khand 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamtaprasad Jain
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year1938
Total Pages192
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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