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________________ गङ्ग-राजवंश। [९१ राजाके साथ रानीका अधिकार गङ्गराज्यमें सम्माननीय था। दरवारों में रानी बराबर राजाके साथ मर्दासन रानीका महत्व। ग्रहण किया करती थी। इतना ही नहीं उसे राजसंचालन में भाग लेने का भी अधिकार प्राप्त था। वह गजाको समानता, न्याय और दयामय शासन करने में सहायक होती थी। श्रीपुरुष. बुटुग और पेरमडी राजाओं के लिये कहा गया है कि उनकी रानियां राजा और युवराज के साथ शासन करती थी। किन्हीं भवसरोंपर रानियों को स्वतंत्र रूपमें किसी स्वास प्रांतका शासनाधिकार प्रदान किया जाता था । रानियों के राजचिह्न संभवतः श्वेतसंख, श्वेतछत्र, स्वर्ण-दण्ड, और चमर होते थे। रानी राजाके सार्वजनिक कार्योंमें भाग लेती, मंदिरोंकी व्यवस्था करती, नये मन्दिर और तालाब बनवाती और धर्मकार्यो दानकी व्यवस्था करती थीं। वह राजाके साथ छावनियोंमें जाकर रहती भी थीं। राजाका अपना शानदार दरबार हुमा करता था, जिसमें राजा-रानी, राजगुरु, चौरीहक, सामन्तराजदरवार। सरदार, राजकर्मचारीगण और अन्य प्रमुख व्यक्ति बैठकर शोभा बढ़ाते थे। दरबारमें बैठकर ही राना न्याय करता था और कवियों एवं विद्वानों की रचनायें और वार्तायें सुनकर उनको पारितोषक प्रदान करता था। धार्मिक वादविवाद भी इन दरबारोंमें हुआ करते थे, जिनमें कभी कभी राजा भी भाग लिया करता था।' १-पूर्व पृष्ठ १२९-१३०. २-पूर्व पृ. १३०. Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.035246
Book TitleSankshipta Jain Itihas Part 03 Khand 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamtaprasad Jain
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year1938
Total Pages192
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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