________________
संक्षिप्त जैन इतिहास |
किंतु खास बात उनके चारित्रमें राजल और राष्ट्र के प्रति अपने कर्तव्यका पालन करना है । वह अपने
सेनापति ।
राजा और देशकी मानरक्षा, समृद्धि और कीर्ति के लिये अपने को उत्सर्ग किये हुये थे । अहिंसा - तत्व के निष्कर्षको चीन कर उन्होंने अलौकिक वीरवृत्ति धारण की थी । वह राजमंत्री ही नहीं गङ्ग राजाओं के सेनापति भी थे। अनेकवार उन्होंने गङ्ग- सैन्यको रणाङ्गणमें वीरोचित मार्ग सुझाया था। उन्हीं के रण - विक्रम और बाहुबल से गङ्ग राष्ट्र फका फूका था । कहा गया है कि खेड़गकी लड़ाई में वज्रदेवको ड्रगकर चामुंडराय ने 'समरधुरन्धर' की उपाधि धारण की थी । नोलम्बरणमें गोनू के मैदान में उन्होंने जो रण-शौर्य प्रगट किया, उसके कारण वह 'वी' - मार्तण्ड' कहलाये | उच्छङ्गिके किलेको जीत कर वह 'रण
४२ ]
:
रन सिंह ' होगये और बागेलूरके किलेमें त्रिभुवनवीर आदिको
-
कालके गाले में पहुंचा कर उन्होंने गोविंदराजको उसका अधिकारी बनाया। इस वीरताके उपलक्षमें वह 'वैरीकुल- कालदण्ड' नामसे प्रसिद्ध हुये । नृपकामके दुर्गको जीतकर वह 'भुजविक्रम' कहलाये । नागर्म द्वेषको दण्डित करके वह 'छलदङ्ग - गङ्ग' पदवी से विभूषित हुये । गङ्ग भट मुडुराचय्यको तलवार के घाट उतारने के उपलक्ष में 'समर - परशुगम' और 'प्रतिपक्ष - राक्षस' उपाधियोंको उन्होंने धारण किया । भटवीरके किलेको नष्ट करके वह 'भटमारि' नामसे प्रख्यात हुये थे । वह वीरोचित गुणोंको धारण करने में शक्य थे एवं सुभटोंमें महान् वीर थे, इसलिये वह क्रमशः 'गुणवम् काय' और 'सुभट चूडामणि' कहलाते थे । निस्सन्देह वह 'वीर - शिरोमणि' थे ।
Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat
-
www.umaragyanbhandar.com