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________________ ७८] संक्षिप्त जैन इतिहास । mNVESTIONINEENNNNNNNNNNNNNNNNNNNNNNN गङ्ग सेनापति चामुंडरायने शीघ्र ही पञ्चलको समराङ्गणमें ललकारा और उसे अपनी करनीका फल चखाया। सन् ९७५ में वह लड़ाईमें काम माया । गङ्गोका दूसरा शत्रु मुडुराचय्य था । चामुंडरायका भाई नागवर्मा उसकी भक्त ठिकाने लानेके लिये उसके मुताबिलेमें गया, परन्तु दुर्भाग्यवश वह राचय्यके हाथसे अपने अमूल्य प्राण खो बैठा । चामुंडरायके लिये यह घटना असह्य थी। वह झटसे राचय्यके सम्मुख आये और बगेयुरके युद्धमें उसकी जीवनलीलाका अन्त किया ! चामुंडरायके शौर्यका मातङ्क चहुंओर छागया, जिससे विरोघियोंकी हिम्मत पस्त होगई। गङ्गराज्यके ऊपरसे माफत के बादल साफ होगये । चामुंडरायकी इस अपूर्व सेवाके उपलक्षमें वह 'परशुराम' की उपाघिसे अलंकृत किये गये । निस्सन्देह चामुंडराय एक महान वीर थे और यदि वह चाहते तो स्वयं गङ्गवाड़ी के राजा बन बैठते; परन्तु उनका नैतिक चरित्र भादर्श और अनुपम था। उनके रोमरोममें त्याग और सेवाभाव भरा हुमा था, जिससे प्रेरित होकर उन्होंने गङ्गराज्यकी नींव दृढ़ कर दी और उसके गौरवको पूर्ववत स्थायी रक्खा । इन अपूर्व सेवाओं के कारण ही उन्हें गङ्गराजाओंका सेनापति और मंत्रीपद प्राप्त हुभा था। उन्होंने वह शांतिमय वातावरण उपस्थित किया था कि जिसमें राजमल्लका राजतिलक किया जा सके। १-गा., पृ. १०९-११. Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.035246
Book TitleSankshipta Jain Itihas Part 03 Khand 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamtaprasad Jain
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year1938
Total Pages192
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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