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________________ - दक्षिण भारतका ऐतिहासिक काल। [६१ तटपर मौजूद था। जैन मान्यता भी इसके अनुकूल है। उसमें नर्मदा तटको एक तीर्थ माना है और वहांसे अनेक जैन महापुरु. षोंको मुक्त हुमा प्रगट किया है। वैसे भी हिंदू पुराणों के वर्णनसे नर्मदा तटकी सभ्यता अत्यंत पाचीन प्रमाणित होती है. यद्यपि अभी. तक वहांकी जो खुदाई हुई है उसमें मौर्यकालसे प्राचीन कोई वस्तु नहीं मिली है। होसक्ता है कि नर्मदा तटका वह केन्द्रीय स्थान अभी अप्रगट ही है कि जहां उसकी प्राचीनताकी द्योतक अपूर्व सामग्री भूगर्भ में सुरक्षित हो। सारांश यह कि जैन ही नहीं बल्कि प्राचीन भारतीय मान्य. तानुसार जैनधर्मका प्रवेश दक्षिणमारत में एक अत्यन्त प्राचीनकालसे प्रमाणित होता है। परन्तु आधुनिक विद्वजन मौर्यकालमें ही जैन धर्मका प्रवेश दक्षिणभारतमें हुआ प्रगट करते हैं। वे कहते हैं कि सम्राट चन्द्रगुप्त मौर्य के गुरु श्रुतकेवली भद्रबाहुने जब उत्तरभारतमें बारहवर्षका अकाल होता जाना तो वे संघ सहित दक्षिणभारतको चले माये और उन्होंने ही यहांकी जनताको जैनधर्ममें सर्व प्रथम दीक्षित किया। इसके विपरीत कोई कोई विद्वान् जैनधर्मका प्रवेश दक्षिणभारतमें इससे किंचित् पहले प्रगट करते हैं। उनका कहना है कि जब लंकामें जैनधर्म इस घटनासे पहले अर्थात् ईस्वीपूर्व पांचवी शताब्दिमें ही पहुंचा हुआ मिलता है तो कोई वजह नहीं कि तब १-नवग्रह बरिष्ट निवारक विधान पृ० ४१। २-'सरस्वती' भाग ३८ अंक १ पृष्ठ १८-१९ । । ३-महिई० पृ० १५४, कैहिई, पृ० १६५, कलि०, पृ० १८ ॥ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.035245
Book TitleSankshipta Jain Itihas Part 03 Khand 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamtaprasad Jain
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year1937
Total Pages174
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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