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________________ दक्षिण भारतका ऐतिहासिक काळ । [ ५७ णित करता है। हां, वह अवश्य है कि उस समयका ठीक हाल हमें कुछ भी ज्ञात नहीं है । उसको ढूँढ निकालने के लिये समय और शक्ति अपेक्षित है। किंतु यह स्पष्ट है कि भारतीय इतिहासका जो आदिकाल योरुपीय विद्वान मानते हैं वह ठीक नहीं है । यह तो हुई समूचे भारतके इतिहासकी बात; परन्तु हमारा सम्बन्ध यहां पर दक्षिण भारतके इतिहाससे दक्षिण भारतका है। हमें जानना है कि दक्षिण भारतका इतिहास कबसे व्यारम्भ होता है, और उसमें जैनधर्मका प्रवेश कबसे हुआ ? यह इतिहास | प्रथक नहीं था तो प्रगट ही है कि दक्षिण भारत समूचे भारतसे और इस दृष्टिसे जो बात उत्तर भारतके इतिहास से सम्बद्ध है वही बात दक्षिण भारत के इतिहामसे लागू होना चाहिये । साधारणतः यह कथन ठीक है और विद्वान यह प्रगट भी करते हैं कि एक समय सारे भारतमें वे ही द्राविड़ लोग मिळते थे जो उपरांत दक्षिण भारत में ही शेष रहे। किंतु दक्षिण भारतकी अपनी विशेषता मी है । वह उत्तर भारत से अपना प्रथक् अस्तित्व भी रखता है और वहां ही आज प्राचीन भारतके दर्शन होते हैं। मैसूर के चन्द्रदल्ली • १- बरई०, पृष्ठ २३ - "Step by step the Dravidians receded from Northern India, though they never left it altogather.” २-“India, south of the Vindhyas – the Peni. nsular India-still continues to be India proper. Here the bulk of the people continue distinctly Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.035245
Book TitleSankshipta Jain Itihas Part 03 Khand 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamtaprasad Jain
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year1937
Total Pages174
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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