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________________ १०] संक्षिप्त जैन इतिहास | है । उनका धर्म स्पष्ट रूपसे माईत मत (जैन धर्म) कहा गया है। नर्मदातटपर बसनेवाले असुरोंको उन्होंने जैनधर्म-रत बनाया था । मसुरोंकी पूर्वोल्लिखित विशेषतायें इन जैनी असुरोंमें मिल जाती हैं। (२) एक ऐसी ही कथा हिन्दू 'पद्मपुराण' ( प्रथम सृष्टि खड १३ पृ० ३३) पर अंकित है और उसमें भी मायामोह जो दिग म्बर मुंडे सिर और मोर पिच्छिकाधारी योगी (योगी दिगम्बरो मुण्डो बर्हिपत्रधरोशयं ) था, उसके द्वारा असुरोंका जैनधर्म रत होना लिखा है।' (३) 'देवी भागवत' ( चतुर्थ (कंघ अध्याय १३ ) में कथन है कि शुक्राचार्य अपने असुर दैत्यादि यजमानोंको देखने गये तो क्या देखते हैं कि छळवेषधारी बृहस्पतिजी उन असुरोंको जैन धर्मका उपदेश देते हैं । वह असुरोंको ' देवोंका वैरी' कहकर सम्बोधन करते हैं, जैसे कि ऋग्वेदमें असुरोंको कहा गया है । १. बृहस्पतिसाहाय्यार्थे विष्णुना मायामोहसमुत्पादनम् दिगम्बरेण मायामोहेन देस्यान् प्रति जैनधर्मोपदेशः दानवानां मायामोहमोहितानां गुरुणा दिगम्बर जैनधर्मदीक्षादानम् ।' ( पद्मपुराण- वेंकटे श्वर प्रेस बम्बई पृ० २) इस पुराणमें दैत्य, दानव और असुर शब्द समवाची पर्थ में व्यवहृत हुये हैं, क्योंकि अंत में लिखा है 'त्रयीधर्मसमुत्सृज्य मायामोहेन तेऽसुराः ।' २. 'रूपधरं सौम्यं बोधयंत कुलेन तान् । जैनधर्म कृतं स्वेन यज्ञनिंदा परं तथा ॥ १४ ॥ भो देवरिपवः सत्यं ब्रवीमि भवतां हितम् । महिंसा परमो धर्मोऽहंतव्याद्याततायिनः ॥ ५५ ॥ इत्यादि । Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.035245
Book TitleSankshipta Jain Itihas Part 03 Khand 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamtaprasad Jain
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year1937
Total Pages174
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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