________________
न /
[ ३
मनुष्य में विवेक, उत्साह और शौर्यको जागृत कर उसे बिजयी वीर बनाता है, इसीलिये उसकी आवश्यक्ता है ।
जैन धर्मका इतिहास उसके अनुयायियोंकी जीवन माथा है; क्योंकि धर्म स्वयं पगु है - वह धर्मात्माओं के आश्रय है । इस बातको लक्ष्य करके पहले जैन इतिहासके तीन खंड लिखे जा चुके हैं। उनके पाठसे पाठकगण जान गये हैं कि धर्मका प्रतिपादन इस कालमें सर्व प्रथम कर्मयुग के आरम्भ में भगवान ऋषभदेव द्वारा हुमा था ।
भगवान ऋषभदेव के पहले यहां भोगभूमि थी। यहांके प्राणियोंको जीवन निर्वाहके लिये किसी प्रकारका परिश्रम नहीं करना होता था । उनका जीवन इतना सरल था कि वह प्राकृतरूपमें ही अपनी व्यावश्यक्ताओं की पूर्ति कर लेते थे । जैन शास्त्र कहते हैं कि 'कल्पवृक्षों' से उन लोगोंको मनचाहे पदार्थ मिल जाते थे । वह मनमाने भोग भोगते और जीवनका मजा लूटते थे । किन्तु जमाना हमेशा एकसा नहीं रहता । वह दिन वीत गये जब यहां ही स्वर्ग था । लोग उतने पुण्यशाली जन्मे ही नहीं कि स्वर्ग-सुखके अधिकारी इस नरवाममें ही होते । जैन शास्त्र बताते हैं कि जब एक रोज कल्पवृक्ष नष्ट हो चले, लोगों को पेटका सवाल हल करने के लिये बुद्धि और बळका उपयोग करना नावश्यक होगया, परन्तु वे जानते तो थे ही नहीं कि उनका उपयोग कैसे करें ? वे अपने में मेधावी पुरुषोंको खोजने लगे, उन्होंने उनको कुलकर या मनु कहा ।
इन कुलकरोंने, जो कुल चौदह थे, लोगोंको जीवन निर्वाह
Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat
www.umaragyanbhandar.com