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________________ ar./ २४८]. संक्षित र इतिहास । सबदायों लोगोंमें थी, उसी प्रकार: भगवत् उमाशाति भी दोनों लप्रदायों द्वारा मान्य और पुरुष थे। दिगम्बर जैन साहित्यो. में भगवान् कुन कुरका वंशन प्रगट किया गया है और उनका HTRI नाम प्रदच्छिाचार्य भी लिखा है। किन्तु उनके गृहस. जीवन के विषय में विगम्पर शाख मौन है। हां, श्वेतांबरीव 'वली , बिगब स्त्र भाग्य' ने उमास्वाति महाराजके विषयमें जो प्रशस्ति मिलती है, उससे पता चलता है कि उनका जन्म न्ययोषिका नामक स्थानमें हुमा था और उनके पिता स्पाति भौर मासा वात्सी थीं। उनका गोत्र कौमीषणि था। उनके दीक्षागुरु श्रमण घोषनंदि और विद्यागुरु वाचकाचार्य मूल नामक थे। उन्होंने कुसुमपुर नामक स्थान में अपना प्रसिद्ध ग्रंथ ' तत्वार्थाधिगम सूत्र ' रचा था। दोनों ही संप्रदायोंमें उमास्वातिको 'वाचक' पदवीसे अलंकृत किया गया है। श्वेतांबरों की मान्यता है कि उन्होंने पांचसौ ग्रंथ रचे थे और १-रश्रा• स्वामी समन्तमद पृष्ठ १४४ एवं 'लोकवार्तिक' का. मित कथन "एतेन गृलपिच्छाचार्यपर्यन्तमुनिसत्रेण ।.. व्यभिचारिता निरस्ता कृतसूत्रे ॥" म. कुंदकंदका भी एक नाम गृपिच्छाचार्य था । शायद यही कारण है कि श्रवणबेळगोळके किन्हीं शिलालेखोंमें भ० कुंदकुंद और भ० उमास्वातिको एक ही व्यक्ति गन्ती लिख दिया है। (इका. भा० २ पृ० १६)। २-अनेकान्त, वर्ष १ पृष्ठ ३८७ ।। ३-पूर्व पृ. ३९४-३९५ एवं " जिनेन्द्रकल्याणाभ्युदय "का नि कोक:Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.035245
Book TitleSankshipta Jain Itihas Part 03 Khand 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamtaprasad Jain
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year1937
Total Pages174
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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