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________________ १४२] सहित जैन इतिहास। . कोण्डकुंदाचार्य नामसे प्रसिद्ध हुए थे। 'बोमाभूत' में कुन्दकुन्दस्वामीने अपनेको श्री भद्रबाहुस्वामीका शिव्य लिखा है।' 'पुण्याश्रा कथा' ग्रंथसे स्पष्ट है कि दक्षिण भारत के पिथनाडू प्रांतमें कुरुमरय नामक गांव था, जिसमें करमुण्ड नामक एक मालदार सेट रहता था। उसकी पत्नी श्रीमती थी। उन्हींके कोखसे भगवान कोण्ड कुन्दका जन्म हुभा था । वह जन्मसे अतिशय क्षयोपशमको लिये हुये था । और युवा होते होते वह एक प्रकाण्ड पण्डित होगये थे। कोण्डकुन्दका गृहस्थ जीवन कैसा रहा यह कुछ ज्ञात नहीं; परन्तु -मुनिदीक्षा लेनेपर वह पद्मनन्दि नामसे प्रसिद्ध हुये थे-भाचार्य रूपमें यही उनका यथार्थ नाम था । पद्मनन्दि स्वामी महान् ज्ञानवान थे-उस समय उनकी समकोटिका कोई भी विद्वान न था। विदेहस्थ श्रीमंधरस्वामीके समवशरणमें उनको सर्वश्रेष्ठ साधु घोषित किया गया था और वह स्वयं विदेह देशको श्रीमंधरस्वामीकी वंदना करके ज्ञान प्राप्त करने गये थे। शिवकुमार नामक कोई नृप उनके शिष्य थे। उन्होंने भारतमें जैन धर्मका खूब ही उद्योत किया था। उनका समय ईस्वी प्रथम शताब्दिके लगभग था । द्राविड संघसे भी उनका सम्बन्ध था। माखिर वह दक्षिणके ही नर स्न थे। कहते हैं कि उन्होंने ८४ पाहुड़ ग्रंथों की रचना की थी; परन्तु विशेषके लिये प्रो. ए० एन० उपाध्ये द्वारा सम्पादित "प्रवचनसार" की अंग्रेजी भूमिका तथा पं० जुगलकिशोरजी मुख्तारकी उसकी समालोचना (जैसिभा० मा० ३ पृ० ५३) देखना चाहिए । १-प्रो० चक्रवर्तीने इन्हें पल्लवंशके शिवस्कन्धकुमार नृप बताया है। -प्रसा० भूमिका पृ० २०। - - Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.035245
Book TitleSankshipta Jain Itihas Part 03 Khand 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamtaprasad Jain
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year1937
Total Pages174
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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