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भान्ध्र साम्राज्य
[ १२५ तामिल राजाओंके समयमें शिक्षाका खूब प्रचार था। स्त्रियां
भी स्वतंत्रतापूर्वक विद्याध्ययन करती साहित्य। भी। उनमें कई स्त्रियां अच्छी कवियत्री
थीं। विद्वत्ता भी केवल उच्च वर्णके. लोगों तक सीमित न थी। हरकोई अपनी बुद्धि-कौशलका प्रदर्शन कर सकता था । उच्च कोटिके साहित्यका निर्माण ठीक हो और साहित्य प्रगतिको प्रोत्साहन मिले, इसलिये एक 'संघम् ' नामकी सभा स्थापित थी; जिसमें उद्भट विद्वान् और राजा रचनामोंकी समालोचना करके उन्हें प्रमाणता देते थे।
इस संधम्कालके लगभग पचास अनूठे तामिक ग्रंथ आजतक उपलब्ध हैं जो इतिहासके लिये महत्वकी चीन हैं। जैनाचार्य भी इस 'संघम्' में भाग लेते थे और तामिलका आरम्भिक साहित्य अधिकांश जैनाचार्योका ऋणी है । पाण्ड्य राजा 'पाण्डियन उर्ग पेरु वलुडि' ने इस संघम् सभामें उल्लेखनीय भाग लिया था। उन्हीं के समक्ष तामिलका प्रसिद्ध काव्य 'कुरल' संघम्में उपस्थित किया गया था और स्वीकृत हुमा था । उस समय ४८ महाकवि विद्यमान थे । 'कुरल' जैनाचार्यकी रचना है, यह हम आगे प्रगट करेंगे। उस समय एक तामिल कवियित्री अनवैय्यार नामक थी। उसने राजाकी प्रशंसामें एक सुंदर रचना रची थी।
तामिल राज्यमें वैदिकधर्म और बौद्धधर्मके अतिरिक्त जैनधर्म
१-ठामाइ० पृष्ठ २८९-२९० व जमीसो० भा० १८ पृष्ठ २१५॥ २-मममानैस्मा• पृष्ठ १.५।
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