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________________ आन्ध्र साम्राज्य । [ १२३ वहांका व्यापार खूब चलता था । ऊर (Ur) जैसे प्राचीन नगर के ध्वंसावशेषोंमें जैतूनकी लकड़ी मिली है जो मलाबारसे वहां पहुंची अनुमान की जाती है। सोना, मोती, हाथीदांत, चांवल, मिर्च मोर, लंगूर आदि वस्तुयें दक्षिणभारतकी उपज थीं जो द्राविड़ जहाजों में लादकर वैविलन, मिश्र, यूनान और रोमको भेजी जातीं थीं। इस व्यापारका अस्तित्व ईस्वी पूर्व ७ वीं या ८ वीं शताब्दि से भी पहलेका प्रमाणित होता है। १ रोमन सिक्के तामिलनाडुसे उपलब्ध हुए हैं, जिनसे तामिळ देश में पश्चिमात्य व्यापारियोंका अस्तित्व सिद्ध होता है। उन्हें लोग 'यवन' कहते थे और इन यवनोंका उल्लेख कई तामिल काव्यों में है तामिळराजागण इन विदेशियोंको अपनी फौज में भरती करते थे और उनके आत्मरक्षक भी यह होते थे। कावेरीप्पुमपहनम्में इन यवनका एक उपनिवेश था । ' तामिलोंका रहन-सहन और दैनिक जीवन सीधा-सादा था । उनकी पोशाक समाजमें व्यक्तिगत प्रतिष्ठा और मर्यादाके अनुसार भिन्न-भिन्न थी । मध्यश्रेणी के लोग बहुधा दो वस्त्र धारण करते थे । एक वस्त्रको वे अपने सिरसे लपेट लेते थे और दूसरेको कमरसे बांध लेते थे। सैनिकलोग बरदी पहनते थे । सरदार लोग मौसमके अनुकूल वस्त्र पहनते थे। लड़कोंकी शादी १६ वर्षकी उम्र में और लड़कियोंकी १२ वर्षकी अवस्था में होती थी ! विवाह के लिये यही उम्र ठीक समझी जाती थी ! मृत व्यक्तियोंके दाहस्थानोंपर १ - हिबारू० पृष्ठ १९८.... । २ - जमीसो० भा० १८ पृष्ठ २१३ । संस्कृति | Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.035245
Book TitleSankshipta Jain Itihas Part 03 Khand 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamtaprasad Jain
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year1937
Total Pages174
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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