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________________ भान्ध्र साम्राज्य [१२१ विचार सम्बन्धी अधिकारोंका उपयोग करती थीं। एक समय कोगुनाडु प्रदेश भी चेर राज्यके अन्तर्गत था, जिसमें वर्तमानका कोइम्बटूर जिला, सलेमका दक्षिण-पश्चिमी भाग, त्रिचनापली निलेका करूर तालुक और मदुरा जिलेका पलनी तालुक गर्भित था। ___ कवि भरुनगिरिनाथरने कोंगु देशपर चेर अधिकारका उल्लेख किया है । बेलुलोरके शिलालेखमें कोकनुन रवि और रवि कोडे नामक चेर राजाओंका उल्लेख है। प्राचीनकालमें चेर राजा अति प्रमावशाली थे और उनका सम्बन्ध उत्तर भारत के राजामोंसे था। सम्राट श्रेणिकने एक केरल राजाकी सहायता की थी, यह पहले लिखा जा चुका है। इससे भी पहले हस्तिनापुरके कुरुराजके सहायककोंगु और कर्णाटकके राजा थे। चेर राजत्वकालमें भी धार्मिक उदारता उल्लेखनीय थी। एक ही घरमें जैन और शैव साथ-साथ धर्म। रहते थे। 'शीलप्पधिकारम्' काव्यके कर्ता चेर राजकुमार इलन्णेवदिगल जैनी थे, जबकि उनके भाई सेंगुतुवन एक शैव थे। तो भी उस समय चेर देशके निवासियोंमें जैन धर्मका खूब ही प्रचार था। ईस्वी पहली-दुसरी शताब्दिमें कोंगु देशके पहले तीन चेर राजाभोंके १-लाभाई०, पृष्ठ २९२ । २-जमीसो०, मा० २१ पृष्ठ ३९-४०। ३-'जहिं बमोट्टजट्टजालंधर मारुभटक्ककीरखसबन्धर । मरवेयंग कुंग वेराडिवि गुजरगोडलाडकनाडवि ॥' -भविसयत्तकहाए सूरामः सन्धिः । ४-साइंज., भा. १ पृष्ठ ४६-४७ । Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.035245
Book TitleSankshipta Jain Itihas Part 03 Khand 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamtaprasad Jain
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year1937
Total Pages174
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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