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________________ अध समा [ ११९ जिस समय मधुराको जारहा था तो मार्गमें एक जैनीने उन्हें सावधान किया था कि वे वहां पहुंचकर किसी जीवको पीड़ा न पहुंचायें और न हिंसा करें, क्योंकि वहां निर्ग्रन्थ ( जैनी ) इसे पाप बताते हैं । पुहरनगरमे जब इन्द्रोत्सव हुआ तो राजाने सब ही सम्प्रदायको निमंत्रित किया। जैनी भी पहुंचे और अपना धर्मोपदेश दिया, जिसके फलरूप अनेकानेक मनुष्य जैन धर्ममें दीक्षित हुऐ । 3 'शी पधिकारम्' काव्यसे प्रगट है कि उसके मुख्य पात्र मधुराकी यात्रा करने गये थे । मधुरा उस समय तीर्थ समझा जाता था। वहां पास में अनेक जैन गुफायें थीं, जिनमें जैन मुनि तपस्या किया करते थे । 'माराधना कथाकोष' से प्रगट है कि भ० महावीरके उपरान्त वहां पर एक सुगुप्ताचार्य नामके महान् साधु हुये थे। उ मदुराकी यात्राको चलकर वे पात्र पहले जैन साधुओं की एक 'पल्लि' में ठहरे थे। वहां चिकने संगमरमरका चबूतरा था, जिसपर से जैनाचार्य उपदेश दिया करते थे। उन्होंने उसकी परिक्रमा दे वन्दना की। वहांसे चलकर उन्हें कावेरी नदीके तटपर आर्यिकाओं का आश्रम मिला | देवन्धि मार्यिका मुख्य थी, वह भी उनके साथ होली । जैन आर्यिकाओंका प्रभाव उस समय तामिल स्त्रीसमाज में खूब था। आगे कावेरीके बीच टापूमें भी उन्होंने जैन साधुके दर्शन किये। सारांश यह कि उन्हें ठौर- ठौरपर जैन मुनियों और भायिकाओंके दर्शन होते थे । इससे वहां जैनधर्मका बहु प्रचलित होना स्पष्ट है । १- साई पृष्ठ ४७-४८ | २ - जैसा० पृष्ठ २९ । ३-माक० । Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.035245
Book TitleSankshipta Jain Itihas Part 03 Khand 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamtaprasad Jain
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year1937
Total Pages174
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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