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________________ १४] संक्षिप्त न इतिहास। और चन्द्रगुप्त मुनिने भी वहींसे समाधिमरण द्वारा स्वर्गकाम किया था। उत्तर भारतसे जैन संघके दक्षिण भागमनकी इस बातोंके पोषक दक्षिण भारतके वे स्थान भी हैं जहां आज भी बताया जाता है कि इस संघके मुनिगण ठहरे थे। अर्काट जिलेका तिरुमलय नामक स्थान इस बातके लिये प्रसिद्ध है कि वहां भद्रबाहुजीके संघवाले मुंनियोंमेसे माठ हजार ठहरे थे। ___ वहाँ पर्वत पर डेढ़ फुट लम्बे चरणचिह्न उसकी प्राचीनताके द्योतक हैं।' इसी प्रकार हस्सन जिलेके हेमवृतनगर ( जो हेमवती नदीके तटपर स्थित था।) के विषयमें कहा जाता है कि वहाँ श्रुतकेवली भद्रबाहुजीके संघके मुनि उत्तर भारतसे भाकर ठहरे थे। ठेघर तामिळ भाषाके प्रसिद्ध नीतिकाव्य ' नालाडियार' की रक्षा विषयक कथासे स्पष्ट है कि उत्तर भारतसे दुर्भिक्षके कारण पीडिर हुये माठ हजार मुनिगण पाण्ड्य देश तक पहुंचे थे । पाण्ड्यनरेश उग्रपेरुवलीने उनका स्वागत किया था। पाण्ड्यनरेश उनकी विद्वत्तापर ऐसा मुग्ध हुआ कि वह उनसे अलग नहीं होना चाहता था। हठात् मुनियोंने अपनी धर्मरक्षाके लिये चुपचाप वहांसे प्रस्थान कर दिया; परन्तु चलने के पहले उन्होंने एक एक पद्य रचकर अपने२ आसन पर छोड़ दिया! यही 'नाला. डियार' काव्य बन गया । सारांशतः इन उल्लेखों एवं अन्य शिला १-ममैप्राजस्मा० पृष्ठ ७४ । २-गैमैकु०, भा० २ पृष्ठ २९६ । ३-हि० भाग १४ पृष्ठ ३३२ ज्ञात नहीं कि पाण्डव नरेशका समय क्या है? Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.035245
Book TitleSankshipta Jain Itihas Part 03 Khand 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamtaprasad Jain
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year1937
Total Pages174
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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