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________________ नन्द और मौर्य सम्राट् । [ २०१ स्वण्डकी रक्षा प्राचीन क्षत्रिय चारित्र - आश्रय- चन्द्रगुप्त करते थे । ' चन्द्रगुप्तने कृष्णा नदीके किनारेपर भी शालममें एक नगर भी बसाया था । किन्तु मालूम होता है कि मौर्योोको उपरान्त दक्षिण भारतमें अधिकाधिक राज्य विस्तारकी आकांक्षा हुई थी। तदनुसार मौय्यने तामिल देशपर आक्रमण किया था । मौय्योंके इस आक्रमणका उल्लेख तामिलके प्राचीन 'संगम्' साहित्यमे मिलता है । संगम् कवि मामूलनार, परनर, प्रभृतने अपनी रचनाओं में मौर्य्य आक्रमणका वर्णन किया है। उससे ज्ञात होता है कि दक्षिणके तीनों प्रधान राज्यों चेर, चोक, और पांण्डयने मिलकर मौय्यका मुकाबिल किया था । तामिळ सेनाके सेनापति पाण्डियन ने दुन्चेलियन नामक महानुभाव थे । मोहरका राजा उनका सहायक था। उधर मौय्यौके सहायक वेडुकर अर्थात् तेलुगु लोग थे । तामिलोंसे पहला मोरचा बहुकर लोगोंने ही लिया था; परन्तु तामिलोंसे वे बुरी तरह हारे थे। इसपर स्वयं मौर्य सम्राट् रणाङ्गणमें उपस्थित हुये थे और घमासान युद्ध हुआ था; किन्तु वेङ्कट पर्वतने मौय्योको मागे नहीं बढ़ने दिया था। फिर भी यह प्रगट है कि मौर्य मैसूर तक पहुंच गये थे । साथ ही विद्वानोंका अनुमान है कि दक्षिण भारतपर यह आक्रमण सम्राट् विन्दुसार द्वारा हुआ था। क्योंकि अशोकने २ १ - सोराबस्य नं० २६३ का शिलालेख, जो १४ वीं शताब्दिका हैं । मकु० पृष्ठ १० एरि० मा० ९ पृष्ठ ९९ । २ - जमीसो ०, भाग १८ पृष्ठ १५५ - १६६ । ३ - जमीसो०, भाग २२ पृष्ठ ५०५ । Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.035245
Book TitleSankshipta Jain Itihas Part 03 Khand 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamtaprasad Jain
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year1937
Total Pages174
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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