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________________ ९२ १ संक्षिप्त जैन इतिहास | रचना और क्रम ठीक वैसा ही है जैसा कि करकंडुकी बनवाईं हुईं • गुफाओंका था । और वहां पर जीमूतवाहन विद्याघर के वंशजका एक समय राज्य भी था । वे ' तगरपुर के अधीश्वर ' कहलाते थे । उपरान्त वे ही लोग इतिहास में शिलाहार वंशके नामसे परिचित हुये थे । करकण्डु महाराजकी सहायता करनेवाला भी एक विद्याधर था और उसने यह कहा था कि नील- महानील विद्याधरोंके वंशज तेरापुर ( तगरपुर) में राज्य करते थे । इससे स्पष्ट है कि शिकाद्वारवंशके राजा उन विद्य घरोंके ही अधिकारी थे, जिनमें नधर्मकी मान्यता थी । शिलाहार राजाओंमें भी अधिकांश जैनी थे। इससे • भी दक्षिण भारत में जैनधर्मका प्राचीन अस्तित्व सिद्ध है । x भगवान् महावीर - वर्द्धमान् । भगवान महावीर जैन धर्म में माने हुये चौवीस तीर्थकरोंमें अन्तिम थे । वे ज्ञातृवंशी क्षत्रिय नृप सिद्धार्थके पुत्र रत्न थे। उनका जन्म वैशाली के निकट अवस्थित कुण्ड ग्राममें हुआ था और उनके जीवनका अधिकांश समय उत्तर भारत में ही व्यतीत हुआ था; परन्तु यह बात नहीं है कि दक्षिण भारतके लोग उनके धर्मो देश से अछूते रहे थे । यह अवश्य है कि उनका विहार ठेठ दक्षिण में शायद नहीं हुआ हो । वहां उनके पूर्वगामी तीर्थङ्कर श्री अरिष्टनेमी आदि x विशेष के लिये 'करकण्डुचरिय' (कारंजा जैन प्रन्थमाला) की • भूमिका देखना चाहिये, जिसके आधारसे यह परिचय सधन्यवाद किखा गया है। Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.035245
Book TitleSankshipta Jain Itihas Part 03 Khand 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamtaprasad Jain
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year1937
Total Pages174
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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