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८४] संमित जैन इतिहास।
भगवान पार्श्वनाथ । काशी देश इक्ष्वाक्वंश-उपकुलके राजा विश्वसेन राज्य करते थे। बनारस उनकी राजधानी थी और वहीं उनका निवासस्थान था। रानी ब्रह्मदत्ता उनकी पटरानी थी। पौषकृष्ण एकाद. शीको उन रानीने एक प्रतापी पुत्र प्रसव किया, जिसके जन्मते ही लोकमें मानंद और हर्षकी एक धारा बह गई। देवों और मनुष्योंने मिलकर खूब उत्सव मनाया। उस पुत्रका नाम 'पार्श्व' रक्खा गया और वहीं जैन धर्मके २३ वें तीर्थकर हुये।
युवावस्थाको प्राप्त करके राजकुमार पार्श्व राज-काजमें व्यस्त होगये । वह अपने पिताके साथ प्रजाका हित सावनेमें ऐसे निरत हुये कि उनका नाम और काम चहुं ओर फैल गया। लोग उन्हें " सर्वजन प्रिय" (People's Favourite ) कहकर पुकारते थे।
___ एकदफा कुमार पार्श्वनाथ मित्रों सहित वनविहारके लिये निकले । बागमें उन्होंने देखा कि उनका नाना महीपालपुरका राजा तापसके भेषमें पंचामि तप रहा है। वह उल्टा मुख किये पेड़में ब्दका हुमा था । कञ्चन-कामिनीका मोह उसने त्याग दिया था; परतु सिर बी इसके त्याममें कमी थी। उसे घमंड था कि मैं साधु मा संसारमें और कोई नहीं। इस घमंडके दर्पये वह अपने माप को भूल गया । उसकी भास्मोलतिका मार्ग नव इण्ठित होगवा । लेकिन वह तप तपता और कायक्लेश सहता था। पामार और उनके मित्रों को उसने उन्हें चीनने
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