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________________ संक्षिप्त जैन इतिहास | यहां यह प्रश्न निरर्थक है कि क्या भगवान अरिष्टनेमि एक ऐतिहासिक महापुरुष थे ? पूर्वोल्लिखित सम्राट् त्रुश्दने ज्जर के दानपत्र में उनका स्पष्ट उल्लेख हुआ है और उससे उनका अस्तित्व एक अति प्राचीनकाल से सिद्ध है । उस दान पत्रके अतिरिक्त गिरिनार पर्वतपा भनेक 'प्राचीन स्थान और लेख हैं, जो भ० अरिष्टनेमिश्री ऐतिहासिकताको प्रमाणित करते हैं । ८२ ] भ० अरिष्टनेमि ऐतिहासिक पुरुष थे। f 1 गिरिनारके बाबा प्यागके मटवाले शिलालेख में केवलज्ञान सम्प्राप्तानाम्" बाक्य पढा गया है; जिससे स्पष्ट है कि वह स्थान किसी केवलज्ञानीके प्रति उत्सर्गी कुन था और यह विदित ही है कि श्री अरिष्टनेमिने गिरिनार पर्वतक निष्ट व वलज्ञान प्राप्त: किया था | मथुराको प्रान पुगतत्वकी मक्षी भी म० नेमिके अस्तित्वको सिद्ध करती है। इसके अतिरिक्त निम्न लिखित साहि त्यकी साक्षी भी इस विषय के समर्थन में उत्व है I .. जैनोंके प्राचीन साहित्य में तो भगवान अमिका वर्णन है हो; परन्तु महत्वकी बात यह है कि हमें वैदिक साहित्यमे भी भग: वान अरिष्टनेमिका उल्लेख हुआ मिलता है। जुर्वेद अ० ९ मंत्र ४ 3 १ - ईऐ०, भा० २० पृ० ३६० २ १ ० पृष्ठ ८६-८८ व स्तर० १३.... । Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.035245
Book TitleSankshipta Jain Itihas Part 03 Khand 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamtaprasad Jain
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year1937
Total Pages174
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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