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संक्षिप्त जैन इतिहास । खारवेलका मगधपर भी उल्लेख है कि उन्होंने पांड्य देशके राजा__ आक्रमण। ओंसे भेट प्राप्त की थी। अतएव यह कहना
होगा कि खारवेलने दक्षिणापथ ( दक्षिण भारत) पर अपना सिक्का जमा लिया था और उन्हें एक मात्र उत्तरापथ (उत्तर भारत ) को विजय करना शेष रहा था। उस समय भारतवर्षके साम्राज्य-सिंहासनपर चढ़नेकी कामना चार आदमियोंको हुई थी । अर्थात् (१) मगधके शुंगवंशीय ब्राह्मण पुष्पमित्र, (२)
आंध्रवंशी शातकर्णि प्रथम, (३) अफगानिस्तान और वाल्हीकका यवन राजा दमेत्रिय (Demeterioo) और (४) स्वयं खारवेल । इनमेंसे शातकर्णिको तो खारवेल परास्त कर चुके थे। बस, उनके लिये पुष्पमित्र और दमेत्रियसे बाजी लेना बाकी था। पुष्पमित्रने 'अश्वमेध' यज्ञ करके चक्रवर्तीपद पाया था ! खारवेलके समान पराक्रमी और धर्मवत्सल राजाके लिये यह सहन करना सुगम नहीं था कि उनके जीतेजी एक अन्य राजा ' चक्रवर्ती ' कहलाये और अश्वमेधादिमें पशु हिंसा करता रहे; जब कि मौर्यकालसे अहिंसा धर्मकी भारतमें प्रधानता रही हो।
___ अतएव खारवेलने मगधपर धावा बोल दिया। इसी समय दमेत्रिय पटनाको घेरे हुये था। और वह भारत-विजय करनेकी अपनी कामनामें प्रायः सिद्धार्थ होचुका था। किन्तु खारवेल ज्योंही झार-खंड-गयासे होते हुये मगध पहुंचे और राजगृह तथा गोरथगिरिके दुर्गोमेंसे अंतिमको सर कर लिया कि दमेत्रिय खारवेलकी चढ़ाईका हाल सुनकर तथा अपने खास राज्यमें विद्रोहका उपद्रव उठते देख पटना, साकेत, पंचाल आदि छोड़ता हुआ मथुरा भागा और मध्य देश
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