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संक्षिप्त जैन इतिहास |
दिया । इस युद्धका परिणाम यह हुआ कि मुशिक क्षत्रियोंकी राजधानीपर खारवेलने अपना अधिकार जमा लिया । यह मुशिक क्षत्रिय कलिङ्गके निकट प्रदेशमें बसनेवाले दक्षिणी लोग माने गये हैं । काश्यप क्षत्री दक्षिण कौशलके निवासी थे और संभवतः खारवेलके सम्बन्धी थे ।
शातकर्णि और मुषिकोंसे निबटकर खारवेल अपनी विजयी. चतुरंगिणी सेना सहित तोसलिको लौट आये
राजधानी में उत्सव | और वहां आकर उन्होंने अपनी प्रजाके चित्त रञ्जनार्थ अनेक प्रकार के उत्सव किये थे ।
नाचरङ्ग, गाद्यवाद्य और प्रीतिभोज तथा समाज भी हुये थे । इन महोत्सव में प्रजाके लिये युद्धका संताप भूल जाना स्वाभाविक था । अपने राज्य के चौथे वर्ष में खारवेलने ' विद्याधर आवास' का पुनरुद्वार किया प्रतीत होता है ।
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इसी वर्ष खारवेलका दूसरा आक्रमण. फिर पश्चिमीय भारत पर हुआ और अबकी उन्होंने राष्ट्रिक एवं भोजक क्षत्रियोंसे बढ़कर खेत लिया । ये दोनों राष्ट्र शातकर्णिके पड़ोसी अनुमान किये गये गये हैं । वे महाराष्ट्र और बरार में रहते बताये हैं। भोजकोका संभवतः प्रजातंत्र राज्य था । खारवेलने इन क्षत्रियोंके राजाओंके छत्र और भिरङ्गार छीनकर नष्ट कर दिये थे और उनको बिलकुल पराजित कर दिया था । उनको मुकुट विहीन बना दिया था । और वह अपनी विजय वैजयन्ती फहराते हुए सानन्द कलिङ्गको लौट आये थे ।
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खारवेलका राष्ट्रिक और भोजकपर
आक्रमण ।
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