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२२] संक्षिप्त जैन इतिहास। आ घेरा; किंतु धनबलके समक्ष उसकी दाल न गली । वह दो वर्ष तक भृगुकच्छका घेरा डालकर हताश पैठणको वापस चला गया । सालिवाहनका मंत्री नहवाणके यहां आरहा; उसने नहवाणका धन धर्मकार्यमें खूब व्यय कराया । अनेक धर्मस्थान बनवाये और खूब दान-पुण्य किया । सालिवाहनने भृगुकच्छपर फिर आक्रमण किया
और अबकी उसकी मनचेती हुई। निद्रव्य नहवाण उसके सामने टिक न सका । इस संग्राममें उसका सर्वथा नाश होगया । आव
श्यक सूत्र भाष्यकी इस कथाको मम० श्री काशीप्रसादजी जायसगल स्थूल रूपमें वास्तविक और तथ्यपूर्ण मानते हैं । वह नहवाण ( नरवाहन ) को क्षत्रप नहवान और सालिवाहनको आन्ध्रवशीय गौतमी पुत्र शातकर्णी सिद्ध करते हैं, जिसकी राजधानी पैठण थी। नहपानके सेनापति ऋषभदत्त द्वारा लिखाये गये नासिकवाले शिलालेखमें भृगुकच्छ, दशपुर, गोवर्धन और सुरपारक नामक नगरोंमें धर्मस्थानोंको बनवानेका भी उल्लेख है ।
गर्गसंहिता' से शकोंका अति लालची होना प्रगट है। सहपान ही भतबली जायसवालजी गौतमी पुत्र शातकणीको की
प्रसिद्ध राजा विक्रमादित्य सिद्ध करते हैं; आचाय हुआ था। जिन्होंने ई० पूर्व ५८ में शकोंकों परास्त
१-'सो विणट्ठो, नटुं नयरंपि गहियं' (संस्कृत= निर्दव्यत्वाननाश सः') इस पदसे नरवाहनकी मृत्यु हुई कहना ठीक नहीं जंचता.। बाल्क नरवाहनके राजत्वका नाश हुमा मानना ठीक है। यह कथा 'जविओसो' भा० १६ पृ० २८३-२९४ से उद्धृत की गई है।
2-Ep. Ind. VIII p. 78. ३-जविमोसो० १६ पृ० २८४. Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com