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संक्षिप्त जैन इतिहास |
शक लोग जैन-धर्म के प्रति सद्भाव रखते थे. यह बात श्वेतांस्वर जैन ग्रन्थोंके काल्काचार्य कथानक '
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काल्काचार्य के समयमें
उज्जैनका राजा गर्दभिल्ल था । उसने अपनी विषयलम्पटता के वश हो. काल्काचार्यकी बहिन आर्यिका सरस्वतीको बलात्कार अपनी स्त्री बनालिया । कालाचार्यको राजाका यह अन्याय और पापकृत्य अस होगया । उन्होंने अन्यायका विच्छेद करनेके लिये शाकदेश ( सैस्तन Seistan) की ओर प्रयाण किया और वहांके शकराजाओंसे मैत्री करली । शकोंके राजा ' साहाणुसाहि 'ने उन्हें राजद्रोह के अपराधमें दण्ड देना चाहा । उन शकोंने कालकाचार्यका कहना माना और इ० पू० १२३ के लगभग ९६ शाही (शक) कुल सिन्धु नदीको पार करके सौराष्ट्रमें आजमे । उनमें से एक उनका राजा हो गया । कालकने उसे उज्जैनीपर आक्रमण करनेके लिये उत्साहित किया । शकराजाने काल्काचार्यके आग्रह से उज्जैनीपर . ई० पू० १०० में हमला किया। गर्दभिल्लके पापका घड़ा भर गया था । वह शक सेनाके सामने टिक न सका । मैदान छोड़कर भांग गया । फलतः शकराजा उज्जैन अथवा मालवाके शासनाधिकारी हुये । काल्काचार्यका उन्होंने आदर किया। आर्यिका सरस्वतीकी भी मुक्ति होगई । वह प्रायश्चित्त ग्रहण कर पुनः ध्यान लीन होगई । विद्वान् लोग इस कथानकको सच्चा मानते हैं। उस समय अर्थात् ईसवी पूर्व
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काचार्य |
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से भी स्पष्ट है।
१ - प्रभावक चरित्र (१९०९ बम्बई ) पृ० ३६-४६ व जवि - ओसो० भा० १६ पृ० २९० २ - कैहि इ० पृ० १६७-८ व ५३२-३; अलाहाबाद यूनीवर्सिटी स्टडीज भा० २पृ० १४८ जविमोसो० भा० १६.
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