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________________ उत्तरी भारतके अन्य राजा व जैनधर्म। [१५९ पढ़े थे । आशाधरकी स्त्री सरस्वतीमे छाहड़ नामक पुत्र हुआ था; जिसने धाराके महाराजाधिराज अर्जुनदेवको अपने गुणोंसे मोहित कर लिया था । वह भी अपने पिताकी तरह बड़ा भारी विद्वान् था। विन्ध्यवर्माका विल्हग मंत्री आशाधरको कविराज कहा करता था। इनकी कविताका विद्व न बहुत आदर करते थे । यहांतक कि जैन मुनि उदयसेनने उन्हें • कलि कालिदास की उपाधि दी थी। मुनि मदनकीर्तिने उन्हें 'प्रज्ञाका पुंज' अर्थात् विद्याका भण्डार कहकर पुकारा था। कवि विल्हणने उन्होंकी मित्रतासे प्रेरित हो कर 'कर्णसुंदरी नाटिका के मंगलाचरणमें जिनदेवको नमस्कार किया था। यह नाटिका अणहिलपाटनके राजा कर्णके जैनमंत्री सम्पत्करके बनवाये हुये आदिनाथ भगवानके यात्रामहोत्सवके लिये बनाई गई थी। आशाधरजीके एक शिप्य मदनोपाध्याय थे । यह माहाराज अर्जुनदेवके राजगुरु और महाकवि थे। यह अर्जुनदेव विन्ध्यवमौके पुत्र थे । आशाधर और उनके पुत्रने इनको भी अपने गुणोंसे प्रसन्न कर लिया था । मदनोपाध्यायके अतिरिक्त आशाधरने देवेन्द्र आदि विद्वानोंको व्याकरण, विशालकीर्ति आदिको तर्कशास्त्र और विनयचंद्र आदिको जैन सिद्धांत पढ़ाया था । उससे आशाधरकी विद्वत्ता, पढ़ानेकी शक्ति और परोपकारशीलताका पता चलता है। उनके स्वयं गृहस्थ होनेपर भी बड़े २ मुनि उनके पास विद्याध्ययन करने आते थे । राजा अर्जुनव के राज्य समयमें जैनधर्मकी उन्नतिके लिये आशाधर नालछा ( नलकच्छपुर ) के नेमिनाथजीके मन्दिरमें जारहे थे। नालछा उस समय जैनधर्मका केंद्र था। कविराजने. अनेक अमूल्य ग्रंथ रचकर एवं अन्य उपायों द्वारा जैनधर्मका मस्तक Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.035244
Book TitleSankshipta Jain Itihas Part 02 Khand 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamtaprasad Jain
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year1934
Total Pages204
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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