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________________ १२२] संक्षिप्त जैन इतिहास । करके परम अतीन्द्रिय सुख पानेका विधान जैनधर्ममें है। हैहय और चेदि शब्द भी जैनत्वके द्योतक हैं। हैह्य 'अधहय' अथवा अहहयका रूपान्तर है अर्थात् पापोंके चूरनेवाला । चेदिसे भाव आत्माको चेतानेवालेका है। दक्षिण भारतमें इस वंशके राजाओंने जैनधर्मके लिये बड़े अच्छे २ काम किये थे । इस वंशके राजा शंकरगणने, जिनकी राजधानी जबलपुर जिलेकी तेवर (त्रिपुरी) थी, कुलपाक तीर्थकी स्थापना (सं०६८०में) की थी। हैहयोंमें कर्णदेव राजा प्रख्यात थे।' यह वीर थे और इन्होंने कई लड़ाइयां लडी थीं। इनकी राजधानी काशीमें थी। मालवाके राजा भोजको इन्होने परास्त किया था। गुजरातके राजा भीमको भी इन्होंने अपने साथ रक्खा था। इनका विवाह हूण जातिकी आवल्लदेवीसे हुआ था, जिससे यशःकर्णदेवका जन्म हुआ था । हैहयवंशकी इस शाखाका अस्तित्व १३ वीं शताब्दि तक रहा था। गुजरातमें चालुक्य वंशके राजाओंने सन् ६३४ से ७४० ___ तक राज्य किया था । इनके एवं गुर्जर और चाल्युक्य राजा व राष्ट्रवंशके अधिकारके समय गुजरातमें साहिजैनधर्म । त्यकी खूब उन्नति हुई थी। तथा इन राजा ओंने जैनधर्मको महत्व दिया था। इस वंशका प्राचीन लेख धारवाड़ जिलेमें आदुर ग्रामसे मिला है। यह राजकीर्तिवर्मा प्रथमका है और इसमें राजाके दानका उल्लेख है, जो उसने नगरसेठ द्वारा बनवाये गये जैनमंदिरको दिया था। बंका १-भाप्रारा०, भा० १ पृ० ४८-५०। २ बंप्राजैस्मा०, पृ० १। ३-बंप्राजैस्मा०, पृ० ११३-१२० । Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.035244
Book TitleSankshipta Jain Itihas Part 02 Khand 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamtaprasad Jain
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year1934
Total Pages204
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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