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________________ "९८] संक्षिप्त जैन इतिहास। ५३० में गाथावद्ध किया था' । श्री मल्लिषेषणजीका ' नागकुमार चरित् ' इससमयके इतिहासका द्योतक हैं।'' भगवती आराधना ' शिवार्य महाराजकी रचना है और इसमें जैन मुनियोंके चरित्रका अच्छा विवेचन है। यह आचार्य आर्य जिननन्दिगणि, आर्य सर्वगुप्तगणि और आर्य मित्रनन्दिके समकालीन थे। अनु. मानतः यह समन्तभद्राचार्य जीसे सौ दो सौ वर्ष पहले हुये थे। उमास्वातिजीका ' तत्वार्थसूत्र' जैन दर्शनको गागरमें सागरके समान प्रगट करनेवाला है। सर्वनन्दि आचार्यका भूगोल विषयक ग्रंथ · लोकविभाग ' वि० सं० ४५८ में रचा गया था। इसप्रकार अनेक आचार्योने जैन दर्शनके अभ्युदय और जनकल्याण की दृष्टिसे अतुल ग्रंथरचनाकी थी। इतना ही क्यों ? वह प्राणीमात्रकी हित दृष्टिसे अपने शांतिमय एकान्तवासको भी एकतरह विस्मरण कर चुके थे। वे · जगतके ' कल्याणार्थ और परम पुरुष महावीरके मोक्षमार्गका सत्यत्व स्थापनार्थ, मौनधर्मको त्यागकर जन सहवासमें ' आगये और वाद-विवादके युद्धक्षेत्रमें उपस्थित होकर, अपने प्रतिपक्षियोंका मुकाबला करने लगे। उनके इस शुम प्रयाससे जनताको यथार्थ धर्मका स्वरूप ज्ञात रहा और वह क्रिया १-जैहि० भा० ११ पृ० १३३ व कलि० पृ० ३६ भूओ साहु परम्परार सयलं लोये ठिय पायंड । एत्ताहे विमलेण सुत्तसहिय गाहानिबद्ध कयं ॥१०२॥ पंचवेय वाससया दुममाए तीस वरीस संजुता । वीरे सिद्धमुवगए तो निबद्धं इमं चरियं ॥१०३॥ २-इंहिक्का०, भा० २ पृ० १८९ । ३-जैहि० भा० ११ पृ० ५४८ । ४-तत्वार्थसूत्र (S. B. J.) भूमिका । ५-इंहिका० भा० २ पृ. ४५१ । Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.035244
Book TitleSankshipta Jain Itihas Part 02 Khand 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamtaprasad Jain
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year1934
Total Pages204
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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