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गुप्त साम्राज्य और जैनधर्म ।
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विक्रमादित्यका ही राज्य था । अतः संभव है कि चन्द्रगुप्त द्वितीयका प्रेम जैनधर्मके प्रति था । यह तो प्रमाणित ही है कि बौद्धों और जैनोंके साथ उसका बर्ताव अच्छा थी । जैन ग्रंथोंमें कथा है कि जैनाचार्य सिद्धसेन दिवाकरने ' अवन्ती ' के महाकालके मंदिरमें एक अतिशय दिखाकर विक्रमादित्य राजाको जैन धर्मानुयायी बनाया था । स्व० महामहोपाध्याय डा० शतीशचन्द्रजी विद्याभूषण विक्रमादित्य के दरबार के नौ कविरत्नोंमें परिगणित क्षपणकको सिद्धसेन ही प्रगट किया है और यह विक्रमादित्य चंद्रगुप्त द्वितीयके. अतिरिक्त और कोई नहीं है। विक्रम संवत के प्रचारक विक्रमादित्य इनसे भिन्न ईसाकी प्रथम शताब्दि में हुये थे । प्रसिद्ध कवि कालि -- दास भी उन्हीं के समयमें हुये थे। मालूम होता है कि वराह मिहिर के समकालीन कालिदास दूसरे थे।
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सिद्धसेनका समय भी ईसाकी चौथी शताब्दि प्रगट होता है । अतः यह होता है कि चंद्रगुप्त विक्रमादित्यको भी सिद्धमेन दिवाकर ने उनके राज्यके अंतमें जैनी बनालिया हो । *
चंद्रगुप्तकी मृत्यु के बाद सन् ४१३ ई० में उसका पुत्र कुमार गुप्त राजसिंहासनपर आरूढ हुआ था । गुप्तवंशके अतिम राजा । उसने अश्वमेध यज्ञ किया था । उसके राज्य में हूण लोगोंने भारतपर हमला किया था और सन् ४५५ में वह उनके साथ लढ़ाई में मारा गया।
१-भाइ० पृ० ९१ । २ - वीर, वर्ष १ पृ० ४७१ । ३-अलाहाबाद यूनीवर्सिटी स्टडीज भा० २ (The date of Kalidas) | ४ - वीर वर्ष १ पृ० ३३५ व पृ० ४७१ ।
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