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________________ मात्रिक क्षत्री और भगवान महावीर । [७७ rrrmwwwwwwwwww यह स्थान मानभूम जिलेमें है और प्राचीन मगध का राज्याघिकार यहां था । अतएव यह बहुत संभव है कि उक्त स्थान ही महावीरजीका केवलज्ञान स्थान हो। इसके लिये झिरियाके निकटवर्ती वंशावशेषोंकी जांच पड़ताल होना जरूरी है । इतना तो विदित ही है कि इन जिलोंमें 'सरा' नामक प्राचीन जैनी बहुत मिलते हैं और इनमें एक समय नैनों का राज्य भी था। किंतु कालदोष एवं अन्य संप्रदायों के उपद्रवोंसे यहांके नैनियों का हास इतना बेढव हुमा कि वे अपने धर्म और सांप्रदायिक संस्थाओं के बारेमें कुछ भी याद न रख सके । यही कारण है कि इस प्रांतमें स्थित भग. वान महावीरजीके केवलज्ञान स्थान का पता आन नहीं चलता है। डा० स्टीन सा० ने पंजाब प्रांतसे रावलपिंडी निलेमें कोटेरा नामक ग्रामके सन्निकट ' मूर्ति' नामक पहाड़ी पर एक प्राचीन जीर्ण जैन मंदिरके विषयमें लिखा है कि यहींपर भगवान महावीरनीने ज्ञान लाभ किया था। किंतु कौशाम्बीसे इतनी दुरीपर और सो भी नदीके सन्निकट न होकर पहाड़ीके ऊपर भगवानका केवलज्ञान स्थान होना ठीक नहीं जंचता । केवलज्ञान स्थान तो मगवदेश में ही कहीं और बहुत करके झिरियाके सन्निकट ही था । उपरोक्त म्थान भगवान के समोशरणको वहां भाया हुआ व्यक्त करनेवाला अतिशयक्षेत्र होगा; क्योंकि यह तो विदित है कि भगवान महावीर विहार करते हुये तक्षशिला आये थे और मूर्तिपर्वत उसके निकट था। १-बविओजस्मा० पृ. ४२-७७ । २-कजाइ० पृ. ६८३ । ३-हॉ० पृ. ८० • नो. Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.035243
Book TitleSankshipta Jain Itihas Part 02 Khand 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamtaprasad Jain
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year1932
Total Pages322
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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