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________________ ज्ञात्रिक क्षत्री और भगवान महावीर । [७३ नाथके तीर्थमें जैनधर्मसे हुआ मानना कुछ अनुचित नहीं जंचम है। गोशाल और पुरण इस संप्रदायके मुख्य नेता थे । गोशालने इस धर्मका प्रचार २४ वर्षतक करके श्रावणी में हालाहलाकी कुंभारशालामें महावीरनीके निर्वाणसे सोलह वर्ष पहले मरण किया था। इस समय उसने अपने कृतदोषोंका प्रायश्चित्त भी लेलिया था और प्रगट कर दिया था कि वह सर्वज्ञ नहीं है ।' आजीविक साधु अच्युत अथवा सहस्रार स्वर्गतक गमन करते हैं। गोशालके मृत्यु उपरान्त भी भाजीविकमतका प्रचार रहा था । संभवतःमहापद्म नन्द मानीविक था और अशोकने नागार्जुनी पर्वतपर इनके लिये गुफायें बनवाई थीं। उपरोक्त कथनसे यह स्पष्ट है कि भगवान महावीरकी छद्मस्थ गोशाल भगवानके दशामें मक्खलि गोशाल उनके साथ अवश्य साथ रहा था, परन्तु रहा था । श्वेताम्बर शास्त्र तो यह स्पष्टतः उनका शिष्य नहीं था। प्रगट करते ही हैं, किन्तु दिगम्बर शास्त्रके इस कथनसे कि भगवान महावीरजीके समोशरणमें उसे अग्रस्थान न मिलनेके कारण वह उनसे रुष्ट होकर प्रथक होगया था, यह प्रगट है कि वह भगवान महावीरजी केवलज्ञान प्राप्त करने के समय अवश्य उनके निकट था। अतः वह भगवान महावीर द्वारा उपदेश प्रारम्भ होनेके ना पहले हीसे अपने पजानमतका.प्रचार करने लगा था। डॉ. हार्णले मा० भगवान महावीरके केवलज्ञान १-विशेषके किये 'आजी.', 'भम', 'वीर' वर्ष ३ अंक ११-१३ व दिसम्बर जैन, भा० १९ अंक १-२ ६-७ से। २-त्रिलोकसार ५४५ व भाचारबार १२०.६ । ३१५-आजी• • ६७-८९ । . Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.035243
Book TitleSankshipta Jain Itihas Part 02 Khand 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamtaprasad Jain
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year1932
Total Pages322
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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