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________________ ६८ ] संक्षिप्त जैन इतिहास । दोनों ही साधु पुण्य-पापको भी नहीं मानते थे । अतः गोशाल और पुरणका एक ही मतके अनुयायी होना सिद्ध है और बहुत करके वह गुरु शिष्यवत् थे । इस दशा में जैनाचार्यने उन दोनों का नामोल्लेख एक साथ प्रकट करके, यह स्पष्ट कर दिया है कि उनका सम्बंध अवश्य एक ही मतसे था; जिसको आजीविक कहते थे । कुछ विद्वान् गोशालको आजीविक मतका नेता और पूरणको अचेलक मतका मुखिया समझते हैं; किंतु यह यथार्थता के विपरीत है । ' ૧ ર वास्तव में उप समय अचेलक नामका कोई स्वतंत्र संप्रदाय 'अचेलक' नियंणोंका नहीं था । अंगुत्तर निकाय में उस समय के द्योतक है । तब इस प्रख्यात मतोंकी जो सूची दी हैं, उसमें नामका के!ई अलग अचेलक नामका कोई संप्रदाय नहीं है । सम्प्रदाय नहीं था | मलून तो ऐसा होता है कि अचेलक शब्द उस समय श्रमण शब्दकी तरह नग्न साधुओंके लिये व्यवहृत होता था औ' मुख्यतः उसका प्रयोग जैन संप्रदाय और उसके साधुओंके लिये होता थे । निर्ग्रथ श्रावकका पुत्र सच्चक अचेलक लोगों की ।।। जिन क्रियायों का उल्लेख करता है, वह ठीक जैन मुनियोंकी क्रियायोंके समान है । इसके अतिरिक्त और भी कई स्थलोंपर बौद्धोंने 'अचेलक' शब्दका प्रयोग जैनोंके लिये किया है । अतएव आजी 7- Js. II. Intro XXVIII ff. २- भमबु० पृ० २०८ । ३- वीर भा० ३ पृ० ३१९-३२१ व भा० ४ पृ० ३५३ | ४-चीनी त्रिपिटकमें भी 'अचेलका व्यवहार जैनोंके लिये हुआ है (वीर ४।३५३), दीनि० उ० पृ० २३ व आजी० १३५ । Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.035243
Book TitleSankshipta Jain Itihas Part 02 Khand 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamtaprasad Jain
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year1932
Total Pages322
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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