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________________ लिच्छिवि आदि गणराज्य । [३३ चेटक भैनधर्मानुयायी थे और भगवान महावीरसे पहले हुये तीर्थङ्करोंकी उपासना करते थे, इनके अतिरिक्त और लोग भी नैनी थे; किन्तु भगवान महावीरके धर्म प्रचार करनेपर उनमें जैनधर्मको प्रधानता प्राप्त हुई थी। बड़े२ रानकर्मचारी भी मैनधर्मानुयायी थे। वजियन संघके प्रमुख राना चेटकके अतिरिक्त सेनापति सिंह, लिच्छिवि अभयकुमार और आनन्द आदि प्रसिद्ध व्यक्ति जनधर्मके परमभक्त थे । सेनापति सिंह संभवतः राजा चेटकके पुत्रोंमेंसे एक थे । यह भगवान महावीरके अनन्य उपासक थे। बौद्ध धर्मकी अपेक्षा जनधर्मकी प्रधानता लिच्छवियोंमें अधिक थी। लिच्छिवि रानवानी वैशालीमें जैनधर्मके अनुयायी एक विशाल संस्थामें थे। म. गौतमबुद्धके वहां कईवार अपने धर्म प्रचार करनेवर भी नोंकी संख्या अधिक रही थी। यह बात चौडोंके 'महाग' नामक ग्रंथमे सेनापति सिंहके कथानकसे विदित है।' वज गन संघकी गनपानी वैशाली, उम समय एक बड़ा लिच्छिवि राजधानी प्रसिद्ध और वैभवशाली नगर था। कहते वैशाली अथवा हैं कि वह तीन भागों में विभक्त था अर्थात् विशाला। (१) वैशाली, (२) वणियग्राम और (३) कुण्डग्राम | कुण्डग्राम भगवान महावीरका जन्मस्थान था और उसमें ज्ञात्रिक क्षत्रियों की मुख्यता थी। वैशालीकी विशालनाके 1-भमबु• पृ. २३१-२३६ । २-भभ०, पृ. ६५ व वीर, भा० ४ पृ. २७६. श्वेताम्बर अनायके ग्रन्थों में स्पष्टतः भगवान महावीरका जन्म सम्पन्य शालीसे प्रस्ट किया हुआ मिलता है। जैसे मुत्रकृताङ्ग (१, २, ३, २२), उत्तराधायन मूत्र (६७) व भगवती सूत्र ( २१ १२.२) में भगवानका उल्लेख वैशालीय या वैशालिक रूपमें हुभा है; - ---- - - Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.035243
Book TitleSankshipta Jain Itihas Part 02 Khand 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamtaprasad Jain
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year1932
Total Pages322
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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