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________________ शिशुनाग वंश । [२७. प्रति उसका विशेष अनुराग ही उसकी मृत्युका कारण हुआ था। एक राजकुमार निसके पिताको उदयनने राजभ्रष्ट कर दिया था, राजमहल में एक मैनमुनिका वेष भरकर पहुंचा था और उसने इसको मार डाला था। यह घटना भगवान महावीरके निर्वाणसे साठ वर्ष बाद घटित हुई अनुमान की गई है। भगवान महावीरका निर्वाण ई० पूर्व ५४५ में माननेसे, दर्शकका राज्य ई• पृ० ५१८ से ४८३ तक और उदयन् का ४८३ से ४६७ तक प्रमाणित होता है । ( नविओसो० भाग १ पृष्ठ ११६) हिन्दु पुराणों के अनुसार उदयन के उत्तराधिकारी नन्दिवर्द्धन नन्दिवर्जन और और महानन्दिन थे; किन्तु उनके विषयमें महानन्दिन्। विशेष परिचय नन्दवंशके इतिहासमें है । उनके नामों में 'नन्दि' शब्दको पाकर, कोई २ विद्वान उन्हें नन्दवंशका अनुमान करता है। उपरान्तके श्वेताम्मर ग्रंथ भी इस बातका समर्थन करते हुए मिलते हैं। उनमें लिखा है कि उदयन्के कोई पुत्र नहीं था; इसलिये एक नन्द नामक व्यक्तिको नो एक नाईके सम्पन्धसे वेश्या पुत्र था, लोगोंने राजा नियत किया था। इसका रानमंत्री कल्पक नामक मैनधर्मका दृढ़ श्रद्धानी था। किन्तु इस कथाको सत्य मान लेना कठिन है। मालम ऐसा होता है कि हिन्द पुराणों में महानन्दिनकी शूद्र वर्णकी ( संभवतः नाइन ) एक रानीके गर्भसे महापद्मनन्दका जन्म हुमा लिखा है। उसी भाषारसे शिशुनागवंशका अंत उदयन्से करके उपरोक क्यानरने नन्द नामक व्यक्तिको वेश्यापुत्र लिख मारा। किन्तु उदयगिरिके हाथी1-4हिए. पृ. १६४ । १-भलि. पृ. ४१।३-हलि ० ४३। Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.035243
Book TitleSankshipta Jain Itihas Part 02 Khand 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamtaprasad Jain
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year1932
Total Pages322
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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