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________________ शिशुनाग वंश। [२३ बौद्ध ग्रंथोंसे पता चलता है कि उसने यह दुष्ट कार्य देवदत्त नामक एक बौद्धसंघद्रोही साधुके बहकानेसे किया था। कुणिक अजातशत्रुका सम्पर्क बौद्ध संघसे उस समयसे था, जब वह राजकुमार ही था। और ऐसा मालूम होता है कि इस समय वह बौद्धभक्त होगया था और अपने पिताको कष्ट देने लगा था क्योंकि वह जैनधर्मानुयायी थे । अपने जीवन के प्रारंभमें मजातशत्रु भी जैन था; यही कारण है कि उनको बौद्धग्रंथोंमें तब 'सब दुष्कर्मोका समर्थक और पोषक' लिखा है।' बौड ग्रंथोंमें जैनोंसे घोर स्पर्दा और उनको नीचा दिखाने का पद पदपर अविश्रान्त प्रयत्न किया हुआ मिलता है; ऐसी दशामें उनके कयनको यद्यपि साम्प्रदायिक मत पुष्टिके कथनसे अधिक महत्व नहीं दिया जासक्ता । तो भी उक्त प्रकार कुणिकका पितृ. द्रोही होना इसी कटु साम्प्रदायिकताका विषफल मानना ठीक नंचता है । यही कारण है कि बौद्धग्रंथ श्रेणिक महारानके विषय में मन्तिम परिणामका कुछ उल्लेख नहीं करते । किन्तु इस ऐतिहा. सि* घटनाका अन्तिम परिणाम यह हुमा था कि कुणिकको अपनी गस्ती सूझ गई थी और माताके समझानेसे वह पश्चात्ताप करता हुआ अपने पिताको बन्धन मुक्त करने पहुंचा किन्तु श्रेणिकने उसको और कुछ मषिक कष्ट देनेके लिये माता जानकर अपना १-भम०, पृ० १३५-१५२ । २-भमबु०, परिशिष्ट और केहि १. पृ. 11-1६३ । 4. प. १८४ श्वेताम्बरों के निर्यावलीसूत्र में इस घटनाका वर्णन है । ईए• मा० २०१० २१ । Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.035243
Book TitleSankshipta Jain Itihas Part 02 Khand 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamtaprasad Jain
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year1932
Total Pages322
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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