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साडमें ईस्वी पूर्व छठी शताब्दिसे दूसरी शताब्दि तकका इतिहास प्रगट किया गया है। पाठक महोदय देखेंगे कि पहले नमानेमें हिंसा धर्मको पालते हुये नोंने केमा वीरत्व प्रगट किया था और जीवनको प्रत्येक दृष्टिसे उन्होंने सफल बनाया था। उनमें बड़े २ सम्राट थे जिन्होंने मारतकी प्रतिष्ठा विदेशोंमें कायम की वी-उनमें बड़े २ योडा थे, जिन्होंने शूरोंके दिल दहला दिये थेउनमें बड़े २ व्यापारी थे, जिन्होंने देशविदेशों में जाकर अपार धनसंचय किया था और उसे धर्म और सर्वहितके कार्यों में खर्च करके भारतका गौरव बढ़ाया था ! और उन नियों में वे प्रात:स्मरणीय महापुरुष थे जो दिगम्बर-प्राकृत वेष में रहकर ज्ञान-ध्यान द्वारा आत्मतेनके पुन थे और जो जीवमात्रा कल्याण करने में अग्रसर थे ! अब भला कहिये कि नैनधर्मका अहिंसातत्व क्यों न वीरत्वका प्रकाशक हो और उसके द्वारा मनुष्य जीवन कैसे सफल न हो ? जैनों का यह प्राचीन इतिहाम आन हम-मवको जीवितजागृत और कर्मठ होने की शिक्षा देता है। गत इतिहासको जानना तब ही सार्थक है जब उसके अनुमार वर्ताव करने का उद्योग किया नाय ! मान प्रत्येक नैनीको यह बात भूल न जाना चाहिये।
यह संभव नहीं है कि प्रस्तुत पुस्तकमें वर्णित काल का संपूर्ण इतिहास आगया हो। हां उसको यथामंभव हर तरहसे पूर्ण बनाने का ख्याल अवश्य रखा गया है और आगामीके भागों में भी रक्खा नावेगा। दूसरे भागका दूसरा खंड भी लिखा नाचुन्न है और वह भी निकट भविष्यमै पाठकों के हाथ में पहुंच जावेगा। माशा, पाठक उनसे यथेष्ट लाम उठावेंगे।
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