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________________ शिशुनाग वंश। [१३ विम्बसार (विन्ध्यमार, विन्दूपार या विधिमार ), (६) कुणिक या मजातशत्रु, (७) दरभक (दर्शक, हर्षक या वंशक); (८) उदयाश्व (उदासी, अनय, उदयी, उदयन् या उदयभद्रक); (९) नन्दिवर्द्धन (अनुरुद्धक या मुंड) और (१०) महानन्दि । राना क्षत्रौन अथवा उपश्रेणिक प्रसिद्ध मम्राट् श्रेणिक बिम्बभौजस अथवा सारके पिता थे : यह मगधके छोटेसे राज्यपर उपश्चणिक । शासन करते थे और इनकी राजधानी प्राचीन रामगृह थी। शिशुनाग वंशके यह चौथे गना थे और बड़े धर्मास्मा एवं शूरवीर थे । जैन शास्त्र कहते हैं कि इन्होंने आसपासके राजाओं को अपने आधीन बना लिया था। उस समय चन्द्रपुरका राना मोमशर्मा अपने पराक्रमके समक्ष अन्य सबको तुच्छ गिनता था, किन्तु महागन उपश्रेणकने उसे भी परास्त कर दिया था। चन्द्रपुर मगधके निकट ही बताया गया है। इस रानाने उपणिककी भेंटमें एक घोड़ा भेना था । वह घोड़ा एक दिवस उपश्रेणिकको भीलोंकी एक पल्लीमें ले पहुंचा था जहां भील राना यमदंडकी कन्या तिलकवतीके रूपलावण्यपर वह मुग्ध होगये थे और उसके पुत्रको राज्याधिकारी बनाने का वचन देकर उन्होंने उसे अपनी रानी बनाया था। इस तिलकावतीसे चिलातपुत्र नामक पुत्र हुमा था। -वृजेश, पृ० १६७ यह वर्णन संभवतः हिन्दू पुराणों के आधारसे है। जैनप्रन्यो में इस वंशका परिचय उपप्रेणिकसे मिलता है। २-प्रेणिक नरित्र पृ० २० । ३-भाराधना कथाकोष मा० ३ ० ३३। Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.035243
Book TitleSankshipta Jain Itihas Part 02 Khand 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamtaprasad Jain
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year1932
Total Pages322
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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